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________________ १४८ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ मुझे आचार्य तुलसी का योग मिला। बचपन से, विद्यार्थी जीवन से, मुनि बनने से पहले और उनका एक ऐसा आशीर्वाद कि मैं संप्रदाय के साथ जुड़ा नहीं। संप्रदाय को मैं आवश्यक मानता हूं । नदी का जल तटों के बीच में बहे, इसे आवश्यक मानता हूं । किन्तु जल जल होता है उसे कभी बांधा नहीं जा सकता। जल की निर्मलता के स्वभाव को कभी रोका नहीं जा सकता। मेरे मन में दर्शन की भावना बचपन से ही जागती रही और मैं बुद्धि की अपेक्षा अनुभव को जगाने में प्रयत्नशील रहा । एक बार अहंकार ने बुद्धि से कहा- “ अनुभव को तुम मत जगाओ । सोया पड़ा रहने दो। यह अनुभव का परम आनन्द जब जग जायेगा तो न मैं बच पाऊंगा और न तुम (बुद्धि) बच पाओगी और न संसार ही बच पाएगा । हम सब समाप्त हो जाएंगे इसलिए इसे सोया रहने दो 1 मुझे स्मरण है कि हमने आगम-संपादन का काम शुरू किया। गुरुदेव ने कहा- बहुत बड़ा दायित्व हम अपने कंधों पर ले रहे हैं, पर एक बात का हमें ध्यान रखना होगा कि आगमों के संपादन में, व्याख्या में, टीका में, टिप्पणियों में और समीक्षात्मक अध्ययनों में, कभी भी संप्रदाय बीच में नहीं आना चाहिए । हमारी सांप्रदायिक मान्यता अगर इससे विपरीत पड़ती है तो हम फुटनोट में दे सकते हैं कि यह हमारी पारंपरिक मान्यता रही है। जब हम वैज्ञानिक युग में संपादन का काम कर रहे हैं तो पूर्ण तटस्थ और आधारों के साथ न्याय करने वाला कार्य करना चाहिए। मैं मानता हूं कि मेरे जीवन का वह दिन और वह क्षण एक अमूल्य क्षण था कि मुझे संप्रदायातीत दृष्टिकोण मिला । परिचित साहित्यकार, विचारक और राजनीति के भी उच्च व्यक्ति बार-बार पूछते रहे कि आपको इस संप्रदाय में रहने से कोई कठिनाई का अनुभव नहीं होता । मैंने रामधारी सिंह दिनकर से भी डॉ. लोहिया से भी, और भी कई मित्रों से इस भाषा में कि आचार्य तुलसी जैसा विशाल नेतृत्व मुझे नहीं मिलता तो शायद आपकी बात पर मुझे सोचना पड़ता। और न जाने मैं किस स्थिति में होता । मैं जो भी बात सोचता हूं, वह इतनी व्यापक और उदार दृष्टि से सोचता हूं कि गुरुदेव हर बात का समर्थन कर देते हैं । इसलिए मुझे कोई कठिनाई का अनुभव नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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