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तेरापंथ के कुछ प्रतिबिम्ब १२६ संविभाग को सर्वोपरि स्थान प्राप्त है।
जहां संघ होता है वहां अनेकता होती है। अनेकता से संघ नहीं बनता। संगठन का आधार है एकता। अपने विचारों में भले स्वतन्त्र हो, अनेकता हो, पर संगठन के आधार-भूत मौलिक विचारों में एकता हो, यह अपेक्षित है। आचार्य भिक्ष ने अन्तिम निर्णय का अधिकार आचार्य को दिया। तेरापंथ इसलिए आश्चर्य है कि वह समन्वय की दिशा से अपरिचित नहीं है। वह दूसरों की बुद्धि पर भरोसा करना जानता है।
सेवा को परम धर्म माना गया है। यह संगठन का आधार बना। साधुओं का जगत् एक अर्थ में बहुत छोटा है। उसमें सब बड़े बन बैठ जाएं तो काम कौन करे? जहां सब में भाई-भाई का व्यवहार है, वहां नौकर कौन आये? आचार्य भिक्षु ने व्यवस्था दी-व्यक्तिगत काम स्वयं व्यक्ति करे और सामुदायिक काम सब करें-बारी-बारी से करें। विशेष स्थिति में एक-दूसरे की सेवा करें। जो एक साधु की सेवा करता है वह समूचे संघ की सेवा करता है। जो एक साधु की उपेक्षा करता है, वह समूचे संघ की उपेक्षा करता है। सेवा का भाव बढ़ा। वह साधना का एक अंग बन गया। कब क्या हो जाए, यह प्रश्न चिह्न नहीं बनता। इस निश्चिन्तता में जो विजय का बीज फलता-फूलता है वह अन्तरतम तक को छू लेता है। इसीलिए आश्चर्य है कि तेरापंथ का संगठन कोमल धागे से बंधा हुआ है। ___आश्चर्य स्वयं आश्चर्य होता है। मैं उसमें डुबकी लगाने को तैयार नहीं हूं। मैं स्फटिक की मर्यादा को तोड़ आगे कैसे बढूं? प्रतिबिम्ब है तो उसे देखनेवाले अवश्य होंगे।
* तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के अवसर पर प्रदन्त वक्तव्य।
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