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________________ १२२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ व्यवस्था को तोड़ा। भाई-भाई की लड़ाई के लिए भरत-बाहुबलि की लड़ाई उदाहरण बन जाएगी।" दूत हतप्रभ हो बाहुबलि की उदात्त वाणी को सुनता रहा। वह बाहुबलि से विदा ले भरत के पास पहुंच गया। बाहुबलि ने जो कहा, वह भरत को बता दिया। ___भरत बाहुबलि से युद्ध करना नहीं चाहता था। नहीं क्यों चाहता था, चक्रवर्ती बनने की आकांक्षा है तो वह युद्ध चाहता ही था। भरत ने विजय-यात्रा के लिए प्रयाण कर दिया। बाहुबलि भी रणभूमि में आ गया। दोनों की सेनाएं आमने-सामने डट गईं। परस्पर युद्ध हुआ। बारह वर्ष तक चला। मानवीय हित के पक्ष में सेना का युद्ध स्थगित हो गया। भरत और बाहुबलि दोनों ने परस्पर युद्ध करने का निर्णय लिया। उन्होंने दृष्टियुद्ध, मुष्टियुद्ध, शब्दयुद्ध और यष्टियुद्ध-ये चार युद्ध निश्चित किए। भरत और बाहुबलि का दृष्टियुद्ध कुछ प्रहरों तक चला। उनकी अनिमेष आंखें एक-दूसरे को घूर रही थीं। भीगी हुई पलकों के अन्तराल में ताराएं डूब रही थीं। भरत की दोनों आखें श्रान्त हो गईं। बाहुबलि वैसे ही एकटक निहारते रहे। भरत पराजित हो गया। मुष्टियुद्ध, शब्दयुद्ध और यष्टियुद्ध में भी भरत को पराजय मिली। पराजित भरत ने मर्यादा का अतिक्रमण कर बाहुबलि पर चक्र अस्त्र का प्रयोग किया। चक बाहबलि के पास गया। प्रदक्षिणा कर भरत के पास लौट आया : वह आत्मीय जनों पर प्रहार नहीं करता। लेजर किरण की गन लाल रंग पर प्रहार नहीं करती। इस चक्र-प्रयोग की घटना से बाहुबलि का क्रोध सीमा पार कर गया। उन्होंने मुट्ठी उठाई और आक्रमण की मुद्रा में भरत. की ओर दौड़े। उपस्थित रणमेदिनी ने हाहाकार किया। एक साथ भूमि और आकाश से प्रार्थना का स्वर फूटा-“ऐसा मत करो। बाहुबलि, यदि तुम भी अपने बड़े भाई को मारना चाहते हो तो बड़े भाई की आज्ञा मानने वाला दूसरा कौन होगा? राजन् ! इस क्रोध संहरण करो। जिस मार्ग पर तुम्हारे पिता चले हैं, उसी मार्ग का अनुसरण करो। भरत को क्षमा करो।” बाहुबलि का अन्तर-विवेक जागा। क्रोध को शान्त कर बोले-“मेरा उठा हुआ हाथ खाली नहीं जा सकता।” अपने हाथ को अपनी ओर मोड़ा। केश का लुंचन कर तपस्या के लिए प्रस्थान कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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