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________________ बाहुबलि : स्वतंत्र चेतना का हस्ताक्षर १२१ सभी सम्राट के सामने नतमस्तक हैं, सम्राट् की आज्ञा को शिरोधार्य किए हुए हैं। उनकी उपस्थिति में आपकी अनुपस्थिति सम्राट को खल रही है। वे चाहते हैं आप उस महापरिषद् में उपस्थित हों और उनकी आज्ञा को शिरोधार्य करें।” परामर्श मांगे बिना ही दूत अपना परामर्श दे बैठा-"सम्राट ने जो कहलाया है, उसे मैं भी उचित मानता है। आपके हित की दृष्टि से कहना चाहता हूं कि आप उनकी इच्छा का मूल्यांकन करें। आप यह सोच कर निश्चिन्त हैं कि भरत मेरा भाई है, किन्तु ऐसा सोचना उचित नहीं है। क्योंकि राजाओं के साथ परिचय करना अन्ततः सुखद नहीं होता। यद्यपि आप बलवान् हैं, फिर भी कहां सार्वभौम सम्राट भरत और कहां एक देश के अधिपति आप। दीपक कितना भी बड़ा हो, वह एक ही घर को प्रकाशित करता है, सारे जगत् को प्रकाशित करने वाला तो सूर्य ही है।" दूत की वाचालता ने बाहुबलि की शौर्य-ज्वाला को प्रदीप्त कर दिया। वे बोले-“ऋषभ के पुत्रों के लिए राजाओं को जीत लेना कौन-सी बड़ी बात है? मुझे जीते बिना ही भरत सार्वभौम चक्रवर्ती बनकर दर्प कर रहा है, यह बहुत आश्चर्य की बात है। आज तक मेरे लिए भाई भरत पिता की भांति पूज्य था, किन्तु आज से वह मेरा विरोधी है। वह अपने छोटे भाइयों के राज्यों को हड़पकर भी संतुष्ट नहीं हुआ। अब मुझ पर अपनी आज्ञा थोपना चाहता है और मेरे राज्य को अपने अधीन करना चाहता है। पर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। मेरे निन्यानवें भाई राज्य को छोड़ पिता के पास चले गए-मुनि बन गए। वैसे ही मैं भी चला जाऊं? उन्होंने संघर्ष को टालने के लिए वैसा किया, किन्तु मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं उनकी भांति सीधा नहीं, अपना पराक्रम दिखाने के बाद जाऊंगा। दूत! तुम शीघ्र जाओ और भरत से कहो-हम अपनी मर्यादा का लोप न करें। यदि तुमने युद्ध लाद दिया तो मैं पीछे नहीं रहूंगा। जय-पराजय की कथा दुनिया कहेगी। मैं संघर्ष से नहीं घबराता। मुझे केवल एक ही चिन्ता है कि भगवान् ऋषभ ने सारे संसार को मर्यादा, व्यवस्था और अनुशासन का पाठ पढ़ाया। हम दोनों युद्ध में उतरेंगे तो लोग क्या कहेंगे? इतिहास लिखा जाएगा-भगवान् ने व्यवस्था दी और उनके पुत्रों ने ही सबसे पहले उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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