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________________ अतीत का अनावरण ६३ जैन धर्म में जातिवाद के लिए कोई स्थान नहीं है । फिर चर्चा से क्यों डरना चाहिए? पुस्तक सामने आ गई। कुछ ऊहापोह हुआ । साथ-साथ यथार्थ को प्रस्तुत करने का मुझे संतोष भी मिला । व्यापक दृष्टि गांधी साहित्य के माध्यम से मैंने रस्किन और टालस्टाय को पढ़ा तो मुझे और अधिक व्यापक सन्दर्भ में चिन्तन करने का अवसर मिला । आचार्य भिक्षु ने सम्प्रदायातीत धर्म की नींव को बहुत मजबूत किया था । उन्होंने इस पर बहुत बल दिया कि धर्म मुख्य है, सम्प्रदाय गौण । यही सूत्र अणुव्रत के प्रवर्तन का आधार बना। गुरुदेव ने अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन किया, तब उसकी समीक्षा इन स्वरों में हुई - आचार्यश्री तुलसी जैन और अजैन - सभी को एक पंक्ति में ला रहे हैं। यदि आचार्य भिक्षु के दृष्टिकोण का सुदृढ़ आधार उपलब्ध नहीं होता तो काफी समस्याएं सामने आतीं पर उस उदार दृष्टि ने सामने आने वाली हर समस्या को चिरजीवी नहीं बनने दिया । मौलिक विचार अणुव्रत आन्दोलन को दार्शनिक दृष्टि से प्रस्तुत करने का अवसर मिला I उससे मैं बहुत लाभान्वित हुआ । अतीत के चिन्तन को वर्तमान की समस्याओं के संदर्भ में देखने की एक दृष्टि मिली और कुछ मौलिक विचार प्रस्थापित हुए । धर्म के विषय में यह प्रसिद्ध धारणा है - धर्म करो, परलोक सुधर जाएगा । धार्मिकों को वर्तमान की कोई चिन्ता नहीं, केवल परलोक को सुधारने की चिन्ता है। धार्मिक व्यक्ति उपासना में विश्वास करता है, चरित्र में विश्वास कम करता है। नैतिकता का आचरण आवश्यक नहीं माना जाता । नैतिकताविहीन धर्म भी चलता है । अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से बहुत सारे प्रबुद्ध विचारक व्यक्ति संपर्क में आए और पारस्परिक आदान-प्रदान में कालातीत और सामयिक - दोनों प्रकार की सचाइयों को समझने का अवसर मिला । अणुव्रत के मंच पर सभी धर्मों और विचारधाराओं के लोग आने लगे और सभी को सुनने का अवसर मिलता गया । उससे समन्वय की दृष्टि को बहुत बड़ा बल मिला। मैं दर्शन का विद्यार्थी रहा । जैन दर्शन को पढ़ा। साथ-साथ अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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