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________________ ८८ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ प्रतिमा को गढ़ा और ऐसे प्रस्तर की प्रतिमा को गढ़ा, जिसका कोई मूल्य नहीं था। प्रतिमा का इस प्रकार निर्माण किया कि उसे यह अनुभव भी नहीं होने दिया कि उसमें किसी विशिष्ट शक्ति का अवतरण या आरोपण किया जा रहा है। कोरा ज्ञान होता तो शून्य पूरा भरता नहीं। उसमें अहंकार को अपना आसन बिछाने का अवसर मिल जाता। ज्ञान के बाद ध्यान की प्रेरणा ने उस शून्य को भर दिया। यदि कोरा ज्ञान होता, ध्यान नहीं होता तो तेरापंथ के नेतृत्व को, सर्वोच्च पद को, उपलब्ध कर मन हर्ष से भर जाता। इस एकछत्र गरिमामय पद पर आचार्य द्वारा नियुक्ति होना एक महत्त्वपूर्ण अवसर है। इस अवसर पर अन्तःकरण में समत्व का भाव जागृत रहे, यह उस सृजन की ही विशेषता है, जिसमें ज्ञान और ध्यान के तत्त्व संतुलित रहे और उनकी फलश्रुति समता के रूप में प्रतिष्ठित रही। एक भाई ने कहा-युवाचार्य बनने के बाद भी शरीर का वजन नहीं बढ़ा, यह कैसे? कोई छोटा-मोटा पद प्राप्त होता है तो भी व्यक्ति शरीर में फल जाता है, की भर जाती है। इतना सर्वोच्च पद पर लेने पर भी परिवर्तन क्यों नहीं आया? मैंने स्मित के साथ कहा-गुरुदेव ने मुझे पहले योगी बना दिया और बाद में युवाचार्य बनाया। इसलिए ऐसा नहीं हो सकता। 'वपुः कृशत्वं'-ध्यान सिद्धि का पहला लक्षण है शरीर की कृशता। इसलिए मांसल होना शायद मेरी नियति में ही नहीं है। आदमी हर्ष से मोटा होता है पर मेरे आचार्य ने मुझे पहले ही समता में प्रतिष्ठित कर दिया, इसलिए विशिष्टता उपलब्ध होने पर हर्ष की बात भी मेरी नियति में नहीं है। मेरे सृजन की नियति है समता। इसका विकास ही मेरी दृष्टि में मेरी सफलता और मेरे सृजन की सफलता है। नए उन्मेष वि. सं.: ००० मेरे जीवन में नये उन्मेष का वर्ष है। चौबीसवें वर्ष में प्रवेश के साथ-साथ मुझे संस्कृत, प्राकृत और दर्शनशास्त्र के अनेक ग्रन्थों के अध्ययन का सहज अवसर मिला। उसी वर्ष मैंने हिन्दी में लिखना शुरू किया। मैं संस्कृत से एक साथ हिन्दी में आया, इसलिए उस समय की मेरी हिन्दी संस्कृतनिष्ठ ही रही, फिर भी हिन्दी में लिखना मुझे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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