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________________ ७६ अतुला तुला अच्छा रहे। यदि वर्षा न हुई तो सारे बीज नष्ट हो जाएंगे।' पिता ने सुना और सोचा कि दोनों पुत्रियों के हित भिन्न-भिन्न हैं । कष्टकाले विचारो यः, स सुखे परिवर्तिते । यमं प्रयुक्तवान् वृद्धो, भारमुत्थापितुं स्मृतः ।।६।। विपत्तिकाल में जो विचार होते हैं, वे विपत्ति के दूर होने पर परिवर्तित हो जाते हैं। एक वृद्ध सिर पर लकड़ी का भार लिये जा रहा था। रास्ता लम्बा था। वह थक गया। अभी गांव दूर था। वह भार को नीचे रख बैठ गया। दुःख के मारे वह मृत्यु को बार-बार याद कर रहा था-'अरे ! मुझे मौत क्यों नहीं उठा ले जाती ? इतने में यमराज उसके सामने आ खड़ा हुआ । वृद्ध ने पूछा-'आप कौन हैं ?' 'मैं यमराज हैं। तूने मुझे याद किया था। इसलिए आया हूं।' वृद्ध मौत के भय से कांपने लगा। उसने कहा-'मैंने तो आपको भार उठवाने के लिए याद किया था। कृपा कर आप लकड़ी के इस गट्ठर को मेरे सिर पर रख दें। स्त्रीद्वयारोपमाधाय, श्वा क्षुधाकुलितो मृतः । मोहमढो नपो मृत्यु, प्राप्तः खादन्निहाम्रकम् ।।७।। १. एक धोबी के दो स्त्रियां थीं। उसके पास एक कुत्ता भी था। उसका नाम था 'सताबा'। उसे प्रायः भूखों मरना पड़ता था। दोनों उसे रोटी नहीं देती थीं। किन्तु जब वे दोनों स्त्रियां परस्पर कलह करतीं तब एक-दूसरे को ‘सताबे की नार' कहती थीं। कुत्ते को इससे संतोष होता था। वह इसी संतोष में भूख से व्याकुल होकर मर गया। २. एक राजा आम्र का शौकीन था। उसे बीमारी हो गई। वैद्य ने आम खाने की मनाही की । राजा मान गया। एक दिन वह शिकार के लिए गया। चिलचिलाती धूप में घोड़े पर दूर तक चला गया। विश्राम करने के लिए वह एक सघन आम वृक्ष के नीचे बैठा। आम की मीठीमीठी सुगंध आने लगी। मन ललचाया। हवा के झोंके के साथ एक आम नीचे आ गिरा । वैद्य के. कथन की अवहेलना कर उसने आम चूस लिया। बीमारी पुनः तेज हो गई । राजा मर गया। जो व्यक्ति मूढ़ होता है, आसक्त होता है, वह इसी प्रकार मृत्यु का वरण करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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