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________________ २१६ अतुला तुला वे कल्पवृक्ष से भी अधिक देने वाले हैं । वे भवसागर को पार करने के निकट पहुंच चुके हैं। उन्होंने अपने शारीरिक सौन्दर्य से कामदेव को भी लज्जित कर दिया है । तुम सदा उनका स्मरण करो। ऐसा सुना है कि कोई एक व्यक्ति कर्ता होता है, दूसरा नाता और तीसरा नष्ट करने वाला। स्वामिन् ! यह लोकोक्ति प्रसिद्ध है । किन्तु तुमने इसे अन्यथा कर डाला है। तुममें ये तीनों शक्तियां-कर्तृत्व, रक्षण और नाश-विद्यमान हैं। प्राणियो! तुम सदा उनका स्मरण करो। तुम कल्याण उत्पन्न करते हो । जो संसार से विरक्त हैं उन्हें दुःख से बचाते हो और अपने कर्मों का अविराम नाश करते हो। भव्यो ! तुम सदा उनका स्मरण करो। समता के अमृत से पुष्ट, अर्हत् पट्ट पर आसीन गुरुदेव को बार-बार वंदना करता हुआ मैं प्रमुदित होता हूं। तुम सदा उनका स्मरण करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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