SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८८ अतुला तुला चेतश्चंचलतां गतं बहुविधं नो बोधितं बुध्यते, प्रत्यूहास्तव दर्शने ह्यगणितास्त्वां यामि केन प्रभो?॥१०॥ भगवन् ! आपके दर्शन में अनगिन बाधाएं हैं। मेरे ये चक्षु बाधक हैं। यह रसलोलुप जीभ भी बाधक है। मेरे ये कान वैभाविक नाद सुनने के रसिक हैं और मेरा त्वग इन्द्रिय-स्पर्श में अनुरक्त है। मेरा चित्त चंचल है। उसे बहुत प्रकार से समझाने-बुझाने पर भी वह अनुशासित नहीं होता। देव ! फिर मैं आप तक कैसे पहुंचूं ? दुःसाध्या रुज उद्भवन्ति बहुला अब्रह्मणां देहिनां, ज्ञातं ज्ञातमिति प्रकाममथ किं स्यान ज्ञानमात्रेण रे। जिह्वा नो वशिनी न संयमपरं चक्षुर्न चैकान्तता, दास्यं नो मनसो विमुक्तमथ तत्त्यक्तुं कथा सा वथा ।।११।। अब्रह्मचारी मनुष्यों में अनेक दुःसाध्य रोग उत्पन्न हो जाते हैं-यह जान लिया है, अच्छी तरह से जान लिया है। किन्तु जानने मात्र से क्या हो। जीभ वश में नहीं है । न चक्षु संयत हैं और न एकान्तवास है । मन की दासता से भी मुक्ति नहीं मिली है । अब्रह्मचर्य को छोड़ने की कथा वृथा-सी हो रही है । अस्माकं हा ! समयकृपया वक्रजाड्यं गतानां, धर्मः शोध्यस्तदपि विधिवद् दुष्करं पालनीयः । अस्तु ज्ञानं रचित रुचिराचारमात्मानुभावात्, . साम्यं योगो मनसि रमतां निर्विकारे विनीते ॥१२।। काल की कृपा से इस युग के हम मुनि वक्रजड हैं। हमारे लिए धर्म का ज्ञान सुलभ है किन्तु उसका विधिवत् आचरण सुलभ नही है। प्रभो! हमारी आत्मशक्ति जागे जिससे हमारे ज्ञान और आचार की दूरी पट जाए और हमारे विनीत और निर्विकार मन में साम्ययोग रमण करे। वार्तायां बहुधा श्रुतं सुपठितं शास्त्रेषु चानेकशो, यद् ब्रह्मवतपालनं तनुभृतां स्यात् सर्वतो दुष्करम्। इत्येवं श्रवणेन सश्रवणकं जातं मनो दुर्बलं, त्वद्भक्तः सुकर न किं हृदयगस्त्वं यस्य चैकान्ततः ॥१३॥ भगवन् ! मैंने बहुत बार सुना है और शास्त्रों में पढा है कि मनुष्यों के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy