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________________ प्रदत्तविषयानुबद्धम् १ : एकता रथ्याकूले पार्श्वयोभिन्नमूला, वृक्षा व्योम्नि प्रेमलग्ना विभान्ति । छाया जाता सर्वतो व्यापिनी तद्, . भिन्ने मूलेप्येकता श्लाघनीया ॥ __ मार्ग के दोनों पार्श्व में वृक्ष लगे हुए थे। उनके मूल पृथक्-पृथक् होने पर भी वे आकाश में प्रेम से मिल रहे थे। उनकी छाया चारों ओर फैल रही थी। मूल के भिन्न होने पर भी एकता श्लाघनीय होती है। (जोबनेर-२००६ मृग० कृ० ७) २ : ताजमहल रक्तोपलाः शिल्पिरुषां. प्रतीका, अद्यापि शान्ति न गता इवाह । बहिःप्रदेशे विशतेति बुद्ध मेष्वस्ति नूनं हृदयानुभूतिः ॥१॥ ताजमहल के बाहर ये लाल पत्थर शिल्पियों के क्रोध के प्रतीक हैं, जो आज भी शान्त हुए प्रतीत नहीं होते। अन्तर्गतस्ताजमहालयस्य, वलक्षतामैक्षिषि भव्यभित्तेः । अरेऽट्टहासोऽस्ति विलासिबुद्धयत्कारितो ही स्वयमेव राज्ञा ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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