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दोनों स्थितियां हमारे सामने हैं। एक स्थिति है - विशुद्ध अध्यवसाय और विशुद्ध लेश्या की। दूसरी स्थिति है - अशुद्ध अध्यवसाय और अशुद्ध लेश्या की । जैसे-जैसे साधना का बल बढ़ेगा, वैसे-वैसे कषाय मंद होगा । जैसे-जैसे कषाय मंद होगा, वैसे-वैसे अध्यवसाय, लेश्या, भाव, कर्म और विचार अपने-आप शुरू होते चले जाएंगे ।
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