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३. अच्छे-बुरे का नियंत्रण कक्ष
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१. • हम क्रिया को देखते हैं-क्रोध के लक्षण को देखते हैं। . भाव को नहीं देखते-क्रोध को नहीं देखते।
लेश्या तक पहुंच, भाव को देखते हैं, तरंगों को नहीं देखते। अध्यवसाय तक पहुंच, तरंगों को देखते हैं, जल को नहीं देखते। अतिसूक्ष्म शरीर तक पहुंच, जल को भी देख लेते हैं। जल में तरंग : तरंग का सघनरूप भाव और भाव का
सघनरूप क्रिया। २. . कषाय मंद कैसे हो? बाह्यसंग मक्ति से।
शरीर की व्यवस्था को मित्र बना लेना* अच्छे आचरण की आदत बनाएं, हानिकारक को देखें। * नई आदत जड़ न पकड़े, तब तक अपवाद न करें। * आदत को बल देने वाले मनोयोगों से लाभ उठाएं। * अभ्यास द्वारा चेष्टा को जीवित रखा जाए। निश्चय की अपेक्षा आदत का महत्त्व अधिक। अच्छे जीवन की पहली शर्त आत्म-नियन्त्रण। आत्म-नियन्त्रण की पहली शर्त उपवास। मौलिक इच्छाएं इन्हीं पर फलती हैं। जटिल इच्छाएं इन्हीं पर फलती हैं।
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हमारा शरीर एक दर्पण है। इस दर्पण में मन के भाव प्रतिबिंबित होते रहते हैं। हम भावों को देखकर अदृश्य को भी देख लेते हैं। जो दूर हैं उसे भी पहचान लेते हैं। जहां तक हमारी पहुंच नहीं होती, वहां
अच्छे-बुरे का नियंत्रण कक्ष २७
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