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________________ का भय मिटे। अच्छी मौत मरने के लिए यह जरूरी है कि जीवन की आसक्ति टूटे। ध्यान के द्वारा, चेतना के जागरण के द्वारा ये दोनों बातें घटित होती हैं। जीवन की आसक्ति समाप्त होती है और मौत का भय भी समाप्त हो जाता है हम चेतना की उस भूमिका में चले जाते हैं जहां जीवन-मरण दोनों मात्र संयोग प्रतीत होते हैं। अनित्य अनुप्रेक्षा का यह सूत्र है-'जीवन भी एक संयोग है और मृत्यु भी एक संयोग है।' गीता कहती है-'जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को छोड़कर नये कपड़े धारण करता है, वैसे ही मृत्यु के बाद आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नये शरीर को धारण करता है।' मरने से डरने की जरूरत क्या है? पर मनुष्य मृत्यु के विषय में जानता है, सुनता है; पर मृत्यु का नाम सुनते ही उसका मन भय से भर जाता है। भय मिटता नहीं है, बना ही रहता है। उपदेश सुनने मात्र से भय नहीं मिटता। भय मिटता है चेतना के जागरण से। आगमों ने बहुत बड़ी सचाई प्रकट की है। किन्तु जब तक यह सचाई चेतना में नहीं जागेगी तब तक आगम और गीता की सचाई पकड़ में नहीं आएगी। महावीर ने कहा, बुद्ध ने कहा, कृष्ण ने कहा, क्राइस्ट ने कहा, सबने यही कहा कि मौत अवश्यंभावी है; उससे मत डरो। उससे भयभीत मत बनो। किन्तु यह सचाई तब तक समझ में नहीं आएगी तब तक व्यक्ति अनुभव के स्तर पर पहुंचकर ध्यान के द्वारा अपनी चेतना को नहीं जगा लेंगे। एक कथवाचक महाभारत की कथा कर रहा था। कथा पूरी होने पर उसने श्रोताओं से पूछा-'कथा का सार क्या समझ पाए?' एक भक्त खड़ा हुआ और बोला- 'मैं इतनी बात समझ पाया हूं कि जब श्रीकृष्ण ने कौरवों से कहा कि पांडवों को पांच गांव दे दो और पूरा राज्य तुम करो। तब दुर्योधन ने कहा-'सूच्यग्रमपि नो दास्ये, बिना युद्धेन केशव!-कृष्ण! बिना युद्ध किए मैं उनको सुई के अग्रभाग जितनी भूमि भी नहीं दूंगा! इससे मैं यह समझ सका कि मेरे अधिकार में जो धन-सम्पत्ति है, मैं बिना लड़ाई के भाइयों को एक सुई मात्र भी उसमें से नहीं दूंगा। उस व्यक्ति ने ठीक ही समझा। जब तक हम ध्यान के द्वारा अपनी शक्ति को नहीं जगा लेते तब तक उत्तम से उत्तम ग्रन्थों को; शास्त्रों २३० आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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