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विषैले रसायन पैदा हो जाते हैं, संचित हो जाते हैं और वे रसायन मन में विकृति पैदा करते हैं। मन में जो विकार उत्पन्न होते हैं, वे विकार अनायास ही उत्पन्न नहीं होते, वे हमारे शारीरिक विकारों के कारण उत्पन्न होते हैं। भगवान महावीर से पूछा गया-'भगवन्! ब्रह्मचर्य की साधना के लिए क्या किया जाए?' भगवान ने कहा-'अवि निब्बलासए-निर्बल भोजन करो।' शक्तिशाली भोजन मत करो। गरिष्ठ भोजन मत करो। ऐसा भोजन करो जिससे पेट की व्याधि मिट जाए। ऐसा भोजन मत करो जिससे वासना को उत्पन्न करने वाला रसायन पैदा हो। फिर पूछा-'भगवन्! और क्या किया जाए?' भगवान ने कहा-'कम खाओ, जिससे कि रसायन इतना न बने जो वासना को उभार सके। कामसंज्ञा की उत्पत्ति के अनेक कारण हैं। उनमें एक कारण है-मांस और रक्त का उपचय। जब शरीर में रक्त और मांस अधिक होता है, उनका उपचय होता है तब काम की संज्ञा तीव्र बनती है। ये सब रासायनिक क्रिया के सूत्र हैं। हमारे शरीर में अनेक प्रकार के तत्त्व उत्पन्न होते हैं। कोशिकाएं अपने लिए विटामिन, प्रोटीन उत्पन्न करती हैं। हमारी चमड़ी के भीतर जब थोड़ा-सा ताप उत्पन्न होता है तब विटामिन 'डी' उत्पन्न हो जाती है। और भी नाना प्रकार के रसायन पैदा होते हैं। भोजन से भी अनेक प्रकार के रसायन उत्पन्न होते हैं और वे हमारी वृत्तियों को प्रभावित करते हैं। फिर पूछा गया-'भगवन्! और क्या उपाय करना चाहिए?' भगवान ने कहा-'अगर ऐसी स्थिति आए कि काम शान्त नहीं हो रहा है तो आहार का विच्छेद कर दो। छोड़ दो। जब आहार समाप्त हो जाता है, लम्बे समय तक उपवास किए जाते हैं, दस-बीस दिन की तपस्या की जाती है तब इन्द्रियां अपने आप शान्त हो जाती हैं, काम-वासना मिट जाती है। जब इन्द्रियों को रसायन का भोजन नहीं मिलता तब वे शान्त हो जाती हैं। आदमी को भोजन नहीं मिलता है तो वह भी शान्त हो जाता है। भूखा आदमी सहज शान्त हो जाता है। इन्द्रियां शान्त, मन शान्त, शरीर शान्त और सब कुछ शान्त। रसायनों का परिवर्तन होता है। पुराने रसायन बदल जाते हैं। ऐसे नये रसायन उत्पन्न होते हैं जो उत्तेजना पैदा नहीं करते। तपोयोग रसायन परिवर्तन का योग है। २१० आभामंडल
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