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बहुत सरल तरीके से निरस्त किया। एनालिटिकल साइकालॉजी के प्रवर्तक डॉ. जुंग ने कहा-'लिबिडो काम-शक्ति का पर्यायवाची शब्द नहीं है। लिबिडो एक सामान्य शक्ति है। शेष सारी शक्तियां उस (लिबिडे) की शाखाएं हैं। उन्होंने एक बहुत बड़ी भ्रान्ति का निरसन किया। यह सही बात है कि शक्ति केवल है तैजस् की। वह शक्ति जिस दिशा में जाती है, उसे संचालित करती है और सक्रिय बनाती है। उस संचालन के आधार पर हम उसका नामकरण कर देते हैं। मन को संचालित करने वाली प्राण-शक्ति को हम मन की शक्ति कह देते हैं। जो शक्ति वचन को संचालित करती है, वह काम-शक्ति कहलाती है। जो जीवन-यात्रा को संचालित करती है वह जीवनी-शक्ति-आयुष्य प्राण कहलाती है। जो शक्ति इन्द्रियों को संचालित करती है वह इन्द्रिय-प्राण, जो शक्ति श्वास-तंत्र को संचालित करती है, वह श्वासोच्छ्वास प्राण कहलाती है। एक ही शक्ति के कार्य-भेद के कारण अनेक नाम बन जाते हैं। ये अलग-अलग शक्तियां नहीं हैं। शक्ति एक है। एक ही शक्ति अनेक काम करती है। जिस दिशा में वह प्रवाहित होती है उस दिशा में वह इतना सिंचन देती है कि बीज पौधा बन जाता है और लहलहा जाता है। हम शक्ति के तंत्र को और शक्ति के सिद्धान्त को समझें। शक्ति-संवर्धन के लिए हमें कुछ प्रक्रियाओं का अवलंबन लेना होगा। जब वह शक्ति विकसित हो जाती है तब हम जिस दिशा में चाहें उस दिशा में उसे प्रवाहित कर लाभ उठा सकते हैं।
शक्ति को विकसित करने के लिए पहला उपाय यह है-हम संकल्प-शक्ति का उपयोग करें। हमारे शक्ति-तंत्र से एक चेतना प्रस्फुटित होती है। चेतना का स्तर है-भाव-तंत्र-लेश्या-तंत्र। हमारे जीवन की समूची प्रणाली भाव-तंत्र से संचालित होती है। आत्म-स्पंदन बाहर आते हैं और भाव का एक संस्थान बनता है। वह ऐसा संस्थान होता है कि जीव के स्पंदन की तरंगें एक आकार लेती हैं और एक भाव के रूप में बदल जाती हैं। उससे हमारे समूचे कर्म-तंत्र का संचालन होता है। हमारा बाहरी व्यक्तित्व वही होता है, जिस प्रकार की लेश्या होती है, जो भाव होता है। जैसा अन्तर् का भाव होता है, जैसी अन्तर् की लेश्या १८६ आभामंडल
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