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के परमाणु अधिक मात्रा में उपलब्ध होंगे, तैजस् - शक्ति शक्तिशाली बनेगा और उसकी क्षमता बढ़ेगी। उसकी प्रक्रिया भी हमें जाननी है। तैजस्-शक्ति को कैसे बढ़ाया जा सकता है और कैसे बाहर से तैजस परमाणुओं को भीतर लिया जा सकता है - यह सब प्रक्रिया पर निर्भर है । पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊर्ध्व और अधो दिशा - इन छहों दिशाओं से तैजस् के परमाणु भीतर लिये जा सकते हैं। उन परमाणुओं को ग्रहण करने और भीतर ले जाने को एक शक्ति चाहिए । शक्ति के बिना वैसा नहीं हो सकता । इस शक्ति पर हमें विचार करना है । केवल शारीरिक शक्ति शक्ति नहीं है । मन की भी शक्ति है और वचन की भी शक्ति है । शरीर की शक्ति काय-बल, वचन की शक्ति वचन - बल और मन की शक्ति मनो-बल- ये तीनों शक्तियां जरूरी हैं। शरीर की शक्ति भी चाहिए, वचन की शक्ति भी चाहिए और मन की शक्ति भी चाहिए । शक्ति तीन नहीं हैं । ये सब शक्ति की शाखाएं हैं। शक्ति एक और सामान्य है उसके पीछे कुछ जड़ता नहीं । शक्ति केवल शक्ति होती है । ये तो शक्ति के भिन्न-भिन्न प्रयोग हैं। शाखाओं को हम मूल से अलग नहीं मान सकते। एक वृक्ष की सौ शाखाएं हैं। शाखा वृक्ष नहीं होती । शाखा शाखा होती है, वृक्ष वृक्ष होता है । वृक्ष मूल है शाखा शाखा है, मूल नहीं । वृक्ष और शाखा को एक नहीं माना जा सकता। शाखा को कोई नाम नहीं दिया जा सकता और यदि उसे कोई नाम दिया जाता है तो इस भ्रान्ति को भी साथ में तोड़ना होता है कि वह शाखा मात्र है मूल नहीं । मनोबल भी मूल शक्ति नहीं है । वचन - बल भी मूल शक्ति नहीं है और काय - बल भी मूल शक्ति नहीं है । ये सब प्राण - शक्ति, तैजस् - शक्ति की शाखाएं हैं।
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मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक भ्रान्ति उत्पन्न हुई । वह भ्रान्ति मनोवैज्ञानिकों के द्वारा उत्पन्न नहीं भी हुई हो किन्तु मनोविज्ञान के विद्यार्थियों में या मनोविज्ञान की चर्चा करने वाले लोगों द्वारा हुई है । उन्होंने मान लिया कि शक्ति एक है और वह है काम की शक्ति । सब कुछ काम-शक्ति ही है और शेष उसी का विकास है । उसी का सब्लीमेशन है । यह बहुत बड़ी भ्रान्ति है । इस भ्रान्ति को डॉ. जुंग ने
आभामण्डल और शक्ति - जागरण ( २ )
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