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जाएंगे। हमें प्रतिदिन का लेखा-जोखा रखना है। प्रतिक्रमण करना है। हमें देखना है कि हम इतने अर्से से साधना कर रहे हैं कहां तक हम पहुंच पाए हैं। क्या प्रतिदिन हम आगे बढ़ रहे हैं या हमारी गति पीछे की ओर हो रही है? हम एक डायरी में इसका अंकन करें।
ध्यान का मूल सूत्र है-जागरूकता, अन्तर्मुखता। जब तक जागरूकता और अन्तर्मुखता बनी रहेगी तो गृहस्थ साधक को काम नहीं सताएगा, वह तनाव से नहीं भरेगा और तनाव मिटाने के लिए उसे मदिरापायी नहीं बनना पड़ेगा। इस साधना से साधु यदि एक साथ वीतराग न भी बने, पर ऊर्जा का ऊर्चीकरण होता रहेगा और आन्तरिक शक्तियां जागेंगी, प्रतिभा में निखार आएगा, प्रज्ञा का जागरण होगा, अन्तर के आलोक का विकास होगा।
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आभामंडल
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