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________________ पुत्र को विवाहित देखना चाहते थे। उन्होंने अपने राज्य की प्रसिद्ध वेश्या कोशारूपा के घर स्थूलभद्र को भेजा। वेश्या से मंत्री ने कहा-'इसमें स्त्री के प्रति आकर्षण पैदा करना है। तुम अपनी समस्त कलाओं का उपयोग कर इसे काम-कला में निपुण बना देना।' वेश्या ने प्रयोग किए और स्थूलभद्र में काम के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा। क्या इसको हम अध्यात्म प्रयोग मानेंगे? क्या यह ध्यान-साधना है? यह सच है कि वेश्या ने स्थूलभद्र की मानसिक चिकित्सा की और उसने स्त्रियों के प्रति उन्मुख किया। स्त्रियों के प्रति मन में जो ग्लानि थी, वह समाप्त हो गई। ___ आजकल धर्म के नाम पर या योगाभ्यास और साधना के नाम पर चलने वाले कुछेक आश्रमों में इस प्रकार की कुण्ठा वाले स्त्री-पुरुषों पर मुक्त यौनाचार का प्रयोग करते हैं और उनकी कुण्ठाओं को समाप्त करते हैं। जो पुरुष स्त्री के पास जाने से या जो स्त्री पुरुष के पास जाने से घबराती है, उनकी इस कुण्ठा को यौनाचार के द्वारा समाप्त कर ध्यान-साधना की दुहाई देते हैं, यह मिथ्या दृष्टिकोण है। यह ध्यान के नाम पर यौनाचार को बढ़ाने का प्रयास मात्र है। यह माना जा सकता है कि इस प्रकार की प्रक्रिया से उसकी मानसिक-चिकित्सा तो हो सकती है, किन्तु इसे हम अध्यात्म-साधना या ध्यान-साधना नहीं मान सकते। यह मन की कुण्ठा की चिकित्सा मात्र है, और कुछ नहीं।। यदि हम इसे ध्यान या अध्यात्म की साधना मानें तो वेश्या कोशारूपा का स्थान पहला होगा। उसने स्थूलभद्र की मानसिक कुण्ठा को मिटाया, उसको उतना ही मूल्य देना होगा जितना मूल्य आज कुछेक आश्रमों में दिया जा रहा है। कोशारूपा ऐसी एक वेश्या नहीं थी। अनेक वेश्याओं ने इस प्रकार के कार्य किए हैं। वे ६४ कलाओं में निपुण होती थीं। उनमें एक मुख्य कला होती थी कि वे अपने प्रयोगों से यौनकुण्ठाओं को मिटाती थीं। इस विधि से वे अनेक पुरुषों को कामुक-प्राणी बना देती थीं। क्या हम उन वेश्याओं को अध्यात्म-केन्द्र मान लें? आज के कुछेक आश्रमों में और उन वेश्यालयों में क्या अन्तर है? उन आश्रमों में प्रयोग इसी आधार पर हो रहे हैं कि वे 'दमन मत करो, भोगो'-के सिद्धान्त पर चलते हैं। उन्होंने 'दमन' शब्द को . आभामंडल १६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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