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४. आभामंडल
१. • ध्यान का उद्देश्य-शक्ति, चेतना और आनन्द-संपन्न व्यक्तित्व
का निर्माण। २. • प्राण-शक्ति के प्रवाह के दो मार्ग-काम और ज्ञान। पहला
प्राकृतिक, दूसरा साधना-लभ्य। यही बिन्दु है पशु और मनुष्य
की भेद-रेखा का। ३. • नया मार्ग खोलें। काम या राग का दमन न करें, चेतना का
अनुभव करें। ४. • काम का रूपान्तरण नहीं, ऊर्जा का मार्गान्तरण करें-न भोग,
न दमन किन्तु रेचन करें।
मैं ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण चाहता हूं जो शक्ति-संपन्न, चेतना-संपन्न और आनन्द-संपन्न हो। ऐसा व्यक्ति मिलना बहुत कठिन है जो इस त्रिपुटी से संपन्न हो। पशु में शक्ति बहुत होती है, किन्तु वह अपनी शक्ति का उपयोग नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी चेतना विकसित नहीं है। उसकी शक्ति का उपयोग मनुष्य करता है क्योंकि उसकी चेतना विकसित है। चेतना का विकास किए बिना शक्ति का सही उपयोग नहीं किया जा सकता। सिंह और हाथी में बहुत शक्ति होती है। बैल और भैंसे में भी प्रचुर शक्ति होती है। किन्तु सब पशुओं की शक्ति का उपयोग मनुष्य ही करता है। उनकी सारी शक्ति मनुष्य के काम आती है। सिंह और बाघ अपनी शक्ति का उपयोग दूसरों को मारने में करते हैं। उनकी शक्ति का कोई सृजनात्मक उपयोग नहीं होता। उस शक्ति से निर्माण नहीं होता, विध्वंस होता है। इस प्रकार पशुओं
आभामंडल १५५
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