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________________ के लिए होता है। इस उपयोग मात्र को समझ कर यदि हम पदार्थ का उपयोग करते हैं तो अनेक समस्याएं सुलझ जाती हैं। ___ पदार्थ नहीं मिटेगा। न पदार्थ को मिटाना है और न सम्पत्ति को मिटाना है, किन्तु पदार्थ और सम्पत्ति के साथ जो हमारा अनुबंध है उसे तोड़ना है। हम पैसा नहीं लेते, किन्तु कपड़ा आदि ले लेते हैं। हम दस रुपये का नोट नहीं लेते, किन्तु दस रुपये मूल्य का कपड़ा ले लेते हैं। आपके मन में यह प्रश्न हो सकता है कि क्या कपड़ा रुपया नहीं है? क्या उसका रुपये जितना मूल्य नहीं है? यह प्रश्न स्वाभाविक है। हमारे पास एक पैसा भी नहीं है; किन्तु एक-एक हस्तलिखित प्रति ऐसी है जिसका मूल्य लाखों में आंका जा सकता है। वह लाखों रुपये मूल्य की हो सकती है। ऐसी वस्तुएं आज भी हमारे पास हैं, फिर भी हम अपरिग्रही हैं। इसे समझें। जो पैसा रखते हैं उनका पैसे के साथ अनुबन्ध हो जाता है, वह उपयोगिता का अनुबन्ध नहीं रहा, मूर्छा का अनुबन्ध हो जाता है। उस मूर्छा को तोड़ना है। पदार्थ पदार्थ है। आत्मा आत्मा है। व्यक्ति व्यक्ति है। एक दूसरा एक दूसरे के काम आता है। एक दूसरे का एक दूसरे के लिए उपयोग है। यह भावना जब बनती है, पनपती है तब समाज स्वस्थ रहता है। तनाव होने का कम से कम अवसर आता है। किन्तु जब वह उपयोगिता बदलकर धन बन जाती है, सिक्का बन जाती है तब उपयोगिता समाप्त हो जाती है। और मूर्छा केवल धनात्मक बन जाती है। उस मूर्छा को तोड़ना आवश्यक है। इससे सामाजिक व्यवहार टूटेगा नहीं, वह अधिक स्वस्थ होगा। इस स्थिति में वे समस्याएं भी समाप्त हो जाएंगी जो समाजवाद के लिए समस्याएं हैं। १५४ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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