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________________ शुद्ध हो जाता है। फिर केवल पदार्थ रहता है, कोरा पदार्थ, कोरी सत्ता। हम पदार्थ को पदार्थ रूप में नहीं जानते, उसे किसी विशेषण के साथ जानते हैं। यथार्थ को यथार्थरूप में नहीं जानते, किसी विशेषण के साथ जानते हैं। हम परमाणु को परमाणु की दृष्टि से, सर्दी को सर्दी की दृष्टि से, गर्मी को गर्मी की दृष्टि से नहीं जानते। सर्दी का मौसम है और कमरे में यदि हीटर लगा हुआ हो तो लगेगा हीटर बहुत मूल्यवान् है। जेठ की दुपहरी, चिलचिलाती धूप में यदि कमरे में हीटर लगा दें तो लगेगा हीटर जैसी निकम्मी वस्तु दूसरी नहीं है। हीटर का अपना कोई मूल्य नहीं है। हीटर न अच्छा होता है और न बुरा होता है। गर्मी के दिनों में बर्फ अच्छा लगता है और सर्दी के दिनों में वह अच्छा नहीं लगता। बर्फ न अच्छा है और न बुरा। पदार्थ का ठंडा होना भी एक पर्याय है और गर्म होना भी एक पर्याय है। जो व्यक्ति भोक्ता है, प्रियता और अप्रियता के संवदेन को अपने साथ जोड़े हए है तो उसे गर्मी में ठण्डी वस्तु अच्छी लगेगी और सर्दी में गर्म वस्तु अच्छी लगेगी। यह अच्छा-बुरा लगना पदार्थ का गुण नहीं, धर्म नहीं और अस्तित्व नहीं। यह मात्र व्यक्ति के मन का संवेदन है। जब तक मन के साथ यह लगना जुड़ा होता है, जब तक मन के साथ 'प्रतिभाती' जुड़ी होती है तब तक पदार्थ को पदार्थ की आंख से नहीं देखा जाता, प्रियता या अप्रियता की आंख से ही देखा जाता है। जब तक प्रियता और अप्रियता का चश्मा लगा रहेगा तब तक पदार्थ जैसा है वैसा नहीं दीखेगा, किन्तु जैसा चश्मा है वैसा ही दीखेगा। हमें केवल चश्मे को उतारना है। चश्मे के कारण आंख भी प्रियता की आंख और अप्रियता की आंख बन गई है। इस चश्मे को हम उतार फेंकें। पदार्थ को केवल नंगी आंखों से देखें, पदार्थ की दृष्टि से देखें। यह होगी सम्यग् दृष्टि, सम्यग् दर्शन, सम्यक्त्व। यह होगा, तब घटना घटना रहेगी, चेतना चेतना रहेगी। घटना न सुख देगी और न दुःख देगी। सुख की चेतना और दुःख की चेतना-ऐसा भी घटित नहीं होगा। आज हमारी चेतना न शुद्ध चेतना है और घटना न शुद्ध घटना है। घटना चेतना को प्रभावित कर रही है और चेतना घटना को प्रभावित कर रही है। घटना और चेतना-दोनों में इतने विकार १२२ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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