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अशान्त नहीं होता, क्योंकि लक्ष्मी भीतर आसन जमाए बैठी है।
यह प्रश्न बहुत बार आता है कि बुरे काम करने वालों के पास कितना धन होता है? उनके पास धन होता है, पर हम इस सूत्र को न भूलें कि लक्ष्मी बाहर बैठी है, घर के भीतर नहीं है। वैसे व्यक्तियों को शारीरिक सुविधाएं मिल सकती हैं, किन्तु उनका मन अशान्त रहता है।
लोग यह भी कहते हैं-अच्छे आचरण करने वालों के पास धन होता है, पर उतना नहीं होता, जितना अपेक्षित होता है। वे वैभवशाली जीवन नहीं जी पाते। यह सच है। पर हम इस बात को न भूलें कि तेजः, पद्म और शुक्ल-लेश्या वाले लोगों के अन्तःकरण में लक्ष्मी बैठी रहती है। उसके मन की शान्ति कभी नहीं टूटती। वे कभी-कभी शारीरिक असविधाएं भी भोगते हैं, पर मन अशान्त नहीं होता।
शान्ति और अशान्ति का प्रश्न लेश्याओं से जुड़ा हुआ है। यह कृष्ण-लेश्या और शुक्ल-लेश्या का प्रश्न है। यह पद्म-लेश्या औरा नील-लेश्या का प्रश्न है। यह तेजो-लेश्या और कापोत-लेश्या का प्रश्न है। यदि हम लेश्याओं के मर्म को समझ लेते हैं तो प्रश्न स्वयं समाहित हो जाते हैं। हमारा दृष्टिकोण इतना बहुमुखी हो गया है कि हम मनुष्य का मूल्यांकन केवल पदार्थ के आधार पर करते हैं और केवल पदार्थ को ही धन या लक्ष्मी मानते हैं। दृष्टिकोण बदलना चाहिए। मूल्यांकन का एक ही दृष्टिकोण नहीं है, कई दृष्टिकोण हैं।
. भगवान महावीर से पूछा गया-“भते! अल्प ऋद्धिवाले जीव कौन हैं। महान् ऋद्धिवाले जीव कौन हैं?' भगवान ने कहा-'नील-लेश्या के जीव अल्प ऋद्धिवाले होते हैं, दरिद्र होते हैं। नील-लेश्या के जीव उनकी अपेक्षा महर्द्धिक होते हैं, कापोत लेश्या के जीव उनकी अपेक्षा से महर्द्धिक होते हैं, तेजो-लेश्या के जीव अधिक महर्द्धिक होते हैं, पद्म-लेश्या के जीव और अधिक ऋद्धिशाली और शुक्ल लेश्या के जीव सबसे अधिक ऋद्धिशाली होते हैं, वैभवशाली होते हैं। कृष्ण-लेश्या के जीव सबसे कम वैभवशाली होते हैं, और शुक्ल-लेश्या के जीव सबसे अधिक वैभवशाली होते हैं।' महावीर ने यह नहीं कहा कि जो करोड़पति होता है, अरबपति होता है, वह महर्द्धिक है और जिसके पास सौ, हजार ही होता है, वह १०६ आभामंडल
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