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________________ होता है, उसको दुःख नहीं होता। दुःख है और दुःख होना-ये दो घटनाएं हैं। दुनिया में दुःख है किन्तु दुःख का अनुभव करना एक दूसरी बात है। कभी-कभी जीवन में ऐसे क्षण भी आते हैं कि जब मन दूसरे काम में लग जाता है, बड़े काम में उलझ जाता है, तब दुःख की सर्वथा विस्मृति हो जाती है। बनॉर्डशा के जीवन की एक घटना है। वे बहुत मजाक करने वाले व्यक्ति थे। एक बार उनके हार्ट में दर्द हो गया। डॉक्टर को बुलवाया और कहा-'हार्ट में दर्द हो गया है। डॉक्टर जानता था। वह बोला-'शा! मुझे बहुत पीड़ा हो रही है। क्या करूं?' डॉक्टर ने ऐसा आकार बनाया कि शा घबरा गये। वे तत्काल उठे। पानी लाए। पानी पिलाया, उपचार किया। डॉक्टर ठीक हो गया। वह उठा और बोला-'शा! मुझे फीस दें। शा ने कहा-'किस बात की फीस दूं?' डॉक्टर ने कहा- 'मैंने तुम्हारा इलाज किया है। उसकी फीस चुकाओ।' शा बोले--'इलाज तो मैंने तुम्हारा किया। उपचार कर मैंने तुम्हें स्वस्थ बनाया। डॉक्टर ने कहा-'शा! मैंने यह सारा नाटक आपके लिए ही तो रचा था। बताइए, आपका दर्द कहां है?' वास्तव में शा उस समय दर्द को भूल ही गए थे। उन्हें आत्म-विस्मृति हो गई थी। दर्द का उन्हें भान ही नहीं रहा। 'जिसका चित्त प्रशान्त होता है, उसके आसपास दुःख भले ही हो, किन्तु दुःख उसके भीतर प्रवेश नहीं कर सकता, ध्यान के द्वारा उसके शरीर का एक-एक कण इतना वज्रमय बन जाता है कि दुःख को भीतर घुसने का अवकाश ही नहीं मिलता। जो उपशान्त होता है, जो जितेन्द्रिय होता है, जो मितभाषी होता है, जो पापभीरु और हित की एषणा करने वाला होता है-ऐसे लोग हमें प्रिय हैं।' यह बात प्रकाश के रंगों ने लक्ष्मी से कहा। लक्ष्मी बोली-'मुझे भी ऐसे ही लोग पसंद हैं। आप जाएं, चिन्ता न करें। मैं आपके यहां आऊंगी, बाहर नहीं, भीतर रहूंगी।' लक्ष्मी आयी और भीतर जाकर बैठ गई। तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या के लोगों के पास लक्ष्मी रहती है, बाहर नहीं भीतर। इसलिए वैसे लोगों के मन में सदा शान्ति बनी रहती है। कभी-कभी उन्हें शारीरिक बाधाएं भी सताती हैं, पदार्थों का अभाव भी होता है, पर उनका मन कभी रंगों का ध्यान और स्वभाव-परिवर्तन १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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