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________________ प्राप्त नहीं होता। ये सब धर्म से मिलते हैं। अध्यात्म इनकी उपलब्धि का साधन है। इसीलिए धर्म या अध्यात्म लोकोत्तर या लोकोत्तम तत्त्व है। जब हम लोकोत्तम तत्त्व के प्रति चलते हैं, उस दिशा में प्रस्थान करते हैं और यदि हमें वही प्राप्त हो, जो लौकिक प्रयत्नों से प्राप्त होता है, वह कुछ भी न मिले जो लौकिक प्रयत्नों से नहीं मिलता तो फिर लौकिक उपाय और लोकोत्तर के बीच में कोई भेद रेखा नहीं खींची जा सकेगी। लौकिक और लोकोत्तर के बीच में यही भेद रेखा हो सकती है कि जो लौकिक उपायों से नहीं मिलता वह लोकोत्तर उपायों से मिल जाता है। भेदरेखा का आदि बिन्दु यही होगा। आज के इस बौद्धिक, तार्किक और वैज्ञानिक युग में इस प्रश्न पर और अधिक गहराई से चिन्तन करना आवश्यक है। हम धर्म और अध्यात्म के लोकोत्तर स्वरूप का अभ्यास करें और उस अभ्यास के द्वारा ऐसी उपलब्धियां करें जो लौकिक अभ्यास से संभव नहीं हैं। आज अपराधों की बाढ़-सी आ रही है। लौकिक साधनों के बावजूद आज अपराध बढ़ रहे हैं, कम नहीं हो रहे हैं। हिन्दुस्तान जैसे गरीब देश में यदि अपराध हों तो माना जा सकता है कि यहां धन का अभाव है, गरीबी है, इसलिए लोग अपराध करते हैं। किन्तु दुनिया के सबसे वैभवशाली देश में यदि हिन्दुस्तान से हजार गुना अपराध हों तो इसे क्या माना जाए? यह नहीं कहा जा सकता कि वहां अपराध अभाव या गरीबी के कारण बढ़ रहे हैं। वहां अपराधों का मूल कारण है-अतिभाव। तब हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि लौकिक पदार्थों के विकास से अपराधों को नहीं मिटाया जा सकता, मनुष्य को नहीं बदला जा सकता। इस बिन्दु पर खड़े होकर ही हमें अध्यात्म की दिशा में जाने की या रूपान्तरित करने की आवश्यकता महसूस होती है। तब हमें ज्ञात होता है कि दुनिया में एक ऐसा तत्त्व भी है, जो लौकिक नहीं है, जो पदार्थ से संबद्ध नहीं है, किन्तु अलौकिक और पदार्थातीत है। इस बिन्दु पर पहुंचकर ही हम अपराधों को कम कर सकते हैं, बुरी आदतों को बदल सकते हैं और व्यक्तित्व का रूपान्तरण कर सकते हैं। स्वभाव-परिवर्तन के बाद एक बात पर और ध्यान देने की जरूरत स्वभाव-परिवर्तन का दूसरा चरण ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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