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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग हम मानें की दुनिया में जितना विरोध है, वह मात्र विरोध ही है तो विरोध को मिटाने का कोई उपाय हमारे पास नहीं है। अनेकान्तवाद का स्वीकार है- जहां-जहां विरोध है वहां-वहां अविरोध भी समाया हुआ है। विरोध और अविरोध को कभी कम नहीं किया जा सकता। यह ऐसा जोड़ा नहीं है, जो कभी कट जाता है, कभी रह जाता है। यह शाश्वत जोड़ा है, शाश्वत युगल है। न कभी पति मरता है, न कभी पत्नी मरती है और न ही कभी तलाक होता है। दोनों अमर और शाश्वत हैं। न कभी विरोध समाप्त होता है, न कभी अविरोध समाप्त होता है। दोनों निरन्तर साथ-साथ बने रहते हैं। इस स्थिति में ही सह-अस्तित्व फलित होता है। एक साथ रहना और एक साथ जीना- इसका अर्थ है, दो विरोधी एक साथ रह सकते हैं।
प्रत्येक वस्तु में दो विरोधी धर्मों का सहावस्थान है। कोई भी चीज ऐसी नहीं है, जिसमें आर्द्रता न हो, स्निग्धता न हो। आर्द्रता और स्निग्धता, ये सब वस्तु के धर्म हैं। ऐसा कोई पदार्थ नहीं है, जिसमें उष्णता या ताप न हो। पानी को उबाला गया, गर्म कर लिया गया। उसे क्या कहें? वह पानी है या आग? पानी का लक्षण है-ठंडा होना, पर यह तो उबल रहा है। इसे पानी नहीं कहा जा सकता। आग का काम है जलना तो क्या इसे आग कहा जाए ? आग भी नहीं कहा जा सकता। आग पर पानी डालें तो यह पानी गर्म होकर भी उसे बुझा देगा। आखिर इसे क्या कहा जाए? इस प्रश्न के मंथन से निष्कर्ष निकला- जो पानी उबाल दिया गया, वह पानी भी है और आग भी है, दोनों है। वह पानी है क्योंकि वह आग को बुझा सकता है। वह आग है क्योंकि उसका शीतलता का धर्म गौण हो गया, तिरोहित हो गया, आग का धर्म प्रधान हो गया। सह-अस्तित्व का दार्शनिक संदर्भ - जैन आगमों में एक प्रश्न आता है- रोटी भी अनाज की है, शाक भी वनस्पति का है। अब उसे क्या कहा जाए? क्या उसे वनस्पति कहा जाए? उत्तर दिया गया- उसे वनस्पति नहीं कहा जा सकता । वह आग भी है, वनस्पति भी है। उसे तेजस्काय कहा जाए। वह अग्नि में पकाया गया है, अग्नि के उष्ण परमाणु उसमें समाए हुए हैं। एक लोहे की छड़ को इतना तपाया गया कि वह आग का गोला बन गया। लोहा पृथ्वीकाय होता है। प्रश्न आया उस अग्निमय लोहे को पृथ्वीकाय कहा जाए या तेजस्काय कहा जाए ? उत्तर दिया गया- उसे पहले तेजस्काय कहा जाए फिर पृथ्वीकाय कहा जाए।
मूल बात है कि दुनिया में सर्वथा विरोध या सर्वथा अविरोध जैसा कुछ भी नहीं है। विरोध और अविरोध का जोड़ा शाश्वत है, चिरंतन है। प्रत्येक पदार्थ भेद और अभेद, विरोध और अविरोध का संगम है। यह सह-अस्तित्व की चर्चा का दार्शनिक संदर्भ है। सह-अस्तित्व के तीन सूत्र व्यवहार के संदर्भ में सह-अस्तित्व के तीन सूत्र हैं- आश्वास, विश्वास और
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