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________________ अहिंसा का व्यावहारिक स्वरूप 43 कुछ नहीं चाहता। राजा दयालु था। वह इस बात से पसीज गया। उसने अपने कर्मचारी से कहा- उसी हाथी पर वही रत्नजटित झूल डालकर उसे यहां ले आओ और इसे उस पर चढ़ाकर घर पहुंचा दो। राजा ने एक आदेश गुप्त रखा था। उसे नहीं बताया गया। जैसे ही वह घर पहुंचा, राजा का आदेश सुनाया गया कि अब तुम मुक्त हो। कोई दंड नहीं दिया जाएगा। तुम सुख से अपने घर में रहो। वह बड़ा प्रसन्न हुआ।साथ-साथ यह दूसरा आदेश भी सुनाया कि यह हाथी, यह झूल और ये सारे रत्न महाराज ने तुम्हें वकसीस किए हैं। तुमने खीझ देखी, नदी में डूबना देखा तो राजा की यह रीझ भी देख लो। वह व्यक्ति बाग-बाग हो गया। 5. प्रशिक्षण का एक विशेष प्रयोग मुझे लगता है- आज हमारे समाज में यह खीझ वाली बात तो बहुत चल रही है किन्तु रीझ वाली बात बहुत कम हो गई है। दोनों पहलू- खीज और रीझ साथ-साथ चलें तो समाज एक संतुलित समाज बनता है। खीझ का प्रतीक हैनिषेधात्मक विचार। रीझ का प्रतीक है विधायक विचार। आज निषेधात्मक विचार बहुत चलते हैं । हिंसा एक निषेधात्मक विचार है । अपराध, चोरी, डकैती, लट-खसोट- सारे निषेधात्मक विचार हैं। यह निषेधात्मक पक्ष यानी खीझ तो बहत चलती है, किन्तु खीझ का दूसरा पहलू रीझ यानी विधायक विचार बिलकुल जीरो बन गया। यह एक बड़ी समस्या है। रीझ के प्रशिक्षण की जरूरत है। क्या अहिंसा के प्रशिक्षण का कोई रूप हो सकता है ? क्या कोई रीझ वाली बात सामने आ सकती है ? इसके प्रशिक्षण का एक स्वरूप और केवल एक उदाहरण प्रस्तुत करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि किस प्रकार हम इन निषेधात्मक भावों को दिमाग से निकाल सकें और किस प्रकार हमारे मस्तिष्क में विधायक भावों को बिठा सकें, जमा सकें। इसकी क्रियान्विति के लिए एक पद्धति की, एक प्रक्रिया की और प्रक्रिया के एक अंग की चर्चा मैं करना चाहूंगा। कायोत्सर्ग की मद्रा में बैठ जाएं और निर्विचार अवस्था का अभ्यास करें। मस्तिष्क को एक बार विचारों से खाली कर दें,शून्य कर दें। वह निर्विचार और निर्विकल्प बन जाए। मस्तिष्क में कोई विचार नहीं और कोई विकल्प नहीं। निर्विकल्प होने का मतलब है कालातीत हो जाना। न कोई अतीत की स्मृति, न कोई भविष्य की कल्पना और न कोई वर्तमान का चिन्तन। तीनों कालों से मुक्त। 6. मुक्त हो बंधनों से काल एक बंधन है। बहुत बड़ा बंधन है काल का। आदमी जकड़ा हुआ है अतीत से। अतीत उसके पीछे भाग रहा है। आदमी अतीत से डरा हआ है। वह भय से छुटकारा पाने के लिए तेज दौड़ रहा है। स्वयं के पदचाप ही उसे डरा रहे हैं। वह और अधिक तेजी से दौड़ता है। वह ठहरना नहीं जानता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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