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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
4. अनिवार्य है अहिंसा का प्रशिक्षण
इस हिंसा से मुक्ति पाने के लिए अहिंसा का प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है । क्या कभी सोचा गया कि जैसे सशस्त्र पुलिस और सेना की जमात खड़ी की जा रही है वैसे ही अहिंसक सैनिकों की जमात खड़ी करने की जरूरत है ? जैसे प्रतिदिन हजारोंहजारों लोगों को शस्त्राभ्यास कराया जाता है, मारने की ट्रेनिंग दी जाती है, वैसे ही क्या न मारने की ट्रेनिंग देना आवश्यक नहीं है ? एक पक्ष पर तो इतना भार दे दिया गया और इतना बल दे दिया गया और दूसरे पक्ष को इग्नोर कर दिया, नकार दिया या अस्वीकार कर दिया। इस स्थिति में अगर हमारे समाज में हिंसा बढ़ती है, अपराध बढ़ते हैं, हत्याएं बढ़ती हैं, मारकाट होती है तो हमें आश्चर्य क्यों करना चाहिए ? हमने एक विकल्प को सर्वथा छोड़ दिया, निर्विकल्प बन गए। यह स्थिति बहुत खतरनाक होती है। मैं सोचता हूं, शायद एक नया विचार हो सकता है, नई कल्पना हो सकती है। पर यह बहुत आवश्यक लगता है कि हिंसा की भांति अहिंसा का प्रशिक्षण भी अत्यन्त अनिवार्य हो अगर हिंसा के क्षेत्र में 10-20 लाख सैनिक काम करते हैं तो अहिंसा के क्षेत्र में 10-20 हजार सैनिक भी बनें तो एक नया चमत्कार हो सकता है, एक नई बात और नई घटना सकती है। किन्तु कोई प्रयत्न नहीं है । अहिंसक व्यक्तित्व के निर्माण के लिए अहिंसा के प्रशिक्षण की बात बहुत आवश्यक है ।
पुराने जमाने की बात है। महाराज छत्रशाल और उनकी परम्परा में एक राजा हुआ अनिलसेन । एक दिन सवारी जा रही थी। सजे हुए हाथी और सजे हुए घोड़े चल रहे थे। हाथी के पीछे एक सेवक चल रहा था। उसके मन में बुरा भाव आ गया। हाथी की झूल में मोती, पन्ने, माणक और रत्न जड़े हुए थे। हीरे भी थे। उस व्यक्ति ने एक हीरा उतारा और जेब में डाल लिया। राजा की दृष्टि अकस्मात् पड़ गई। राजा ने अपने अधिकारियों को बुलाया और कहा कि इसने चोरी की है, अपराध किया है। इसे सजा मिलनी चाहिए। पास में नदी है। इसे नदी में डुबाओ और फिर निकाल लो, फिर डुबाओ और फिर निकाल लो। जब तक मर न जाए, यही क्रम चलाओ। एक काम और करना । काफी समय के बाद इसकी अन्तिम इच्छा पूछ लेना । आदेश मिला और जो जल्लाद थे उसे मारने वाले, वे उसे नदी पर ले गए और वैसा क्रम शुरू किया। फिर अन्तिम इच्छा के लिए पूछा। वह बोला, मेरी एक इच्छा है कि एक बार मैं महाराज के दर्शन कर लूं और मेरी कोई इच्छा नहीं है। सूचना भेजी गई। राजा ने कहा कि अन्तिम इच्छा पूरी करो, उसे ले आओ। वह लाया गया। वह महाराज के सामने खड़ा है। राजा ने कहा - हो गई तुम्हारी अन्तिम इच्छा पूरी। उसने कहा- महाराज ! आधी पूरी हुई है। एक बात कहना चाहता हूं- महाराज ! आप बड़े दयालु शासक हैं, यह मैंने सुना है, जाना है और जानता हूं। आपने एक छोटी-सी बात के लिए मुझे इतना कड़ा दण्ड दिया। आपकी खीज तो मैंने देख ली। आप दयालु हैं, अतः आपकी रीझ देखना चाहता हूं और
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