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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग पीठ पर मलने लगा। अचानक वैद्य वहां पहुंच गया। उसने देखा और कहाअरे! दवा तो आंख की दी थी, तुम पीठ पर मल रहे हो ? उसने कहा- आपने ही कहा था कि आंख में लगेगी। अतः पीठ पर मल लेता हूं, यहां जलन नहीं होगी। आंख हो या पीठ - दोनों शरीर के ही तो अंग हैं ।
यह विपर्यय, यह झूठा भ्रम बहुत चलता है । मानसिक स्वास्थ्य और भावात्मक स्वास्थ्य के बारे में भी ऐसी बहुत भ्रांतियां चल रही हैं। ठीक निदान नहीं हो रहा है। ठीक निदान हो और ठीक कारणों का पता लगा सके तो कोई कारण नहीं कि हिंसा बढ़े, अपराध बढ़े और हत्याएं बढ़े। सही निदान नहीं हो रहा है और सही उपचार नहीं हो रहा है। मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है, भावात्मक स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है, अपराध और हत्याएं बढ़ती जा रही हैं। निदान और उपचार करने की जरूरत है। उस उपचार में योगासनों का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है।
सबसे ज्यादा मूल्य है भाव का
हमारे शरीर में कुछ ऐसे सूक्ष्म रसायन हैं, जो हमारे विचारों और भावों को प्रभावित करते हैं। उनमें पिच्यूटरी, पिनियल, थाइरायड और एड्रीनल - इन चार ग्रन्थियों के स्राव बहुत प्रभावित करते हैं। इनका स्राव बहुत थोड़ा-सा होता है। इतना थोड़ा कि जिसका कोई पता ही नहीं चलता। किन्तु ये स्राव हमारे विचारों, भावों को बहुत प्रभावित करते हैं । ये शरीर को तो प्रभावित करते ही हैं, किन्तु भावतंत्र को भी प्रभावित करते हैं। इनमें असंतुलन होता है तो सारी मानसिक और भावात्मक व्यवस्था गड़बड़ा जाती है। इन पर नियन्त्रण करने के लिए योगासनों का बहुत ज्यादा मूल्य है। बहुत लोग केवल पाचन-तंत्र, श्वसन तंत्र आदि-आदि को ठीक करने के लिए योगासनों का प्रयोग करते हैं। वे चाहते हैं कि पाचन ठीक हो, श्वास की प्रणाली ठीक हो और रक्त संचार ठीक होता रहे। इन दृष्टियों से योगासनों का प्रयोग करते हैं। यह कोई गलत बात नहीं है। हर आदमी शरीर को स्वस्थ रखना चाहता है । यह आवश्यक भी है, किन्तु हम भुला देते हैं इस बात को कि शरीर का जितना मूल्य है उससे ज्यादा मूल्य है मन का और उससे भी ज्यादा मूल्य है- भावों का । शरीर का संचालन भाव करते हैं । भाव का सबसे ज्यादा मूल्य है। मन का संचालन भी भाव करते हैं। हम भाव पर जब ध्यान नहीं देते हैं, भावात्मक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देते हैं तो शारीरिक स्वास्थ्य बहुत कमजोर बन जाता है।
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प्रश्न है भावतंत्र को 'मजबूत बनाने का
एक आदमी बहुत हट्टा-कट्टा है। किसी ने आकर एक संवाद दे दिया, तुम्हारा इकलौता बेटा दुर्घटना ग्रस्त हो गया। उस समय क्या होता है ? शरीर तो बहुत मजबूत है, बहुत हृष्टपुष्ट है, पर उस संवाद से उसका सारा शरीर ढीला पड़ जाता है,
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