________________
अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
रसों का - दूध, दही, नवनीत, चीनी आदि का - अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। ये रस विकार पैदा करते हैं, आदमी को दृप्त बनाते हैं। जहां दृप्ति होती है वहां काम वासनाएं उभरने लगती हैं और वे व्यक्ति को उसी तरह पीड़ित करती हैं, जैसे स्वादु फल वाले पेड़ को पक्षी पीड़ित करते हैं ।
आहार और स्वास्थ्य
30
अधिक रसों का सेवन नहीं करना चाहिए। सब रस-त्याग की बात से मांसाहार के त्याग की बात स्वतः प्राप्त हो जाती है । मनुष्य को इस तथ्य के प्रति अधिक सावधान रहना चाहिए कि किस प्रकार के भोजन से भावात्मक स्वास्थ्य कैसा होता है ? आज आदमी केवल यह देखता है, सोचता है कि किस प्रकार के भोजन से शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहता है। यह भ्रान्ति है । यह एक पहलू हो सकता है पर यही सब कुछ नहीं हो सकता। भोजन के तीन परिणाम होने चाहिए - शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और भावात्मक स्वास्थ्य । भोजन का चुनाव करते समय हमारा विमर्श होना चाहिए कि यह भोजन भावात्मक स्वास्थ्य को बढ़ाने वाला है या घटाने वाला ? दूसरा विमर्श यह हो कि यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है या हानिकारक है ? तीसरा विमर्श यह हो कि यह भोजन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए उपकारक है या हानिकारक ? यदि केवल शारीरिक स्वास्थ्य के पहलू को ही ध्यान में रखकर भोजन का चुनाव किया जाता है तो बात बनती नहीं । यदि भावात्मक स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो शारीरिक स्वास्थ्य से क्या होगा ?
भोजन के विमर्श का पहला बिन्दु है - भावात्मक स्वास्थ्य । भावात्मक स्वास्थ्य का सीधा संबंध है अहिंसा से। जिनका भावात्मक स्वास्थ्य जितना अच्छा होगा, वह उतना ही अच्छा अहिंसक होगा। जो भावात्मक दृष्टि से बीमार होगा, वह हिंसक होगा, अपराधी होगा, हत्यारा होगा । ये अपराध और हत्याएं भावात्मक अस्वास्थ्य के कारण होती हैं ।
चिन्तन की दयनीय स्थिति
आज चिंतन के क्षेत्र में एक दयनीय स्थिति बनी हुई है। आज सब कुछ शरीर की दृष्टि से सोचा जाता है। उसके बाद नम्बर आता है मन का । मन के विषय में बहुत कम सोचा जाता है, किंतु भावात्मक दृष्टि से सोचा तो नहीं के बराबर है आज के विचार का पहलू है- शरीर, फिर मन और फिर भावना । इसे बदलना जरूरी है। विचार का मुख्य पहलू होना चाहिए भावना, फिर मन और फिर शरीर । जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला तत्त्व है भावना । जैसा भाव वैसा मन और जैसा मन वैसा शरीर । अनेक विकार भाव के कारण उत्पन्न होते हैं। अनेक बीमारियां भाव के कारण होती हैं। जब भाव मन को प्रभावित करता है, मन म हो जाता है । जब मन बीमार हो जाता है, शरीर बीमार बन जाता है ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org