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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
शरीर के लिए कुछ मुख्य तत्त्वों की आवश्यकता होती है जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बेट आदि। प्रोटीन आवश्यक है किन्तु आज का भोजन प्रोटीनमय बन गया । इसलिए अनेक बीमारियां पनपने लगीं। घुटने का दर्द भी अधिक प्रोटीन के सेवन से होता है। अधिक प्रोटीन की लालसा ने व्यक्ति को मांसाहार की ओर प्रेरित किया है। आज विद्यालयों में बच्चे को प्रारम्भ से ही सिखाया जाता है कि अण्डों में प्रोटीन अधिक रहता है। उससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है । भावनात्मक असंतुलन का मुख्य घटक : आहार ।
आज आहार के विषय में नई-नई खोजें सामने आ रही हैं। उनसे भ्रान्तियां टूटी हैं और टूटती जा रही हैं। आज माना जाने लगा है कि अधिक प्रोटीन खाना हानिकारक है। अण्डे का और मांस का सेवन करना बीमारी को निमंत्रण देना है। यह भोजन बीमारियां ही नहीं बढ़ाता, भावात्मक स्थिति को भी बिगाड़ देता है। भावात्मक स्थितियों की गड़बड़ी में दो मुख्य तत्त्व हैं-मांसाहार और मादक वस्तुओं का सेवन । आज की एक बीमारी है- मज्जाक्षय। इससे हड्डियां इतनी जल्दी टूट जाती हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। पैर फिसला, गिरा और हड्डी टूटी। इसका मूल कारण है मज्जाक्षय । हड्डी का सार तत्त्व है-मज्जा । यह कमजोर होती जा रही है। मज्जाक्षय के दो बड़े कारण हैं-भावात्मक असंतुलन और अतिश्रम। अति कामुकता और क्रोध भी मज्जाक्षय के कारण हैं। क्रोध के आवेश में मांसपेशियों का संकुचन और फैलाव होता है। इससे मज्जा का क्षय होता है।
वर्तमान व्यक्ति में जो भावात्मक असंतुलन है, उसका आहार भी एक मुख्य घटक है। व्यक्ति के आहार में वे पदार्थ अधिक हैं जो भावात्मक असंतुलन पैदा करते हैं। अन्न और मन का संबंध
आहार के तीन प्रकार हैं-राजसिक आहार, तामसिक आहार और सात्त्विक आहार । जीवन का भोजन के साथ गहरा संबंध है। इसलिए कहा गया है-जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन । अन्न और मन का संबंध गहरा है। दूसरे शब्दों में, अन्न और भावों का गहरा संबंध है इसीलिए भोजन संबंधी अनेक वर्जनाएं की गईं। तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए, मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करना चाहिए, प्याज़-लहसुन आदि का वर्जन करना चाहिए। मांस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, आदि-आदि। योद्धाओं और हिंसकों के लिए मांस-मदिरा की छूट थी, क्योंकि क्रूर हुए बिना दूसरों का कत्लेआम नहीं किया जा सकता। योद्धा को क्रूर होना होता है तभी वह अपने शत्रुओं को घास की भांति काट सकता है। उनके लिए तामसिक आहार की उपयोगिता बताई। सात्त्विक आहार करने वाले के मन में करुणा जाग जाती है। वह दूसरे को मार नहीं सकता।
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