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________________ अहिंसा का सिद्धान्त सकते। साधन -मीमांसा में इतना ही होगा कि अहिंसा के साधन हिंसात्मक नहीं हो अहिंसा का स्वरूप है- असंयम से बचना, संयम करना । कष्ट संयम हो सकता है, और सुख असंयम, इसलिए कष्ट से बचाव करना और सुख प्राप्त करना यह अहिंसा का स्वरूप नहीं बन सकता । उपवास व अनशन जैसी कठोर तपस्याएं कष्टकर अवश्य हैं, फिर भी अहिंसात्मक हैं। भोगोपभोग सुख है, फिर भी हिंसा है अहिंसा की दृष्टि संयम की ओर होनी चाहिए। अमुक कष्ट से बचा या नहीं बचा, अहिंसा के लिए यह शर्त नहीं होती। उसकी शर्त है - असंयम से बचा या नहीं। पहले विकल्प के तीनों रूप शरीर-रक्षा की कोटि के हैं । विकल्प दो विकल्प तीन विकल्प चार विकल्प पांच Jain Education International - 15 - - इनमें साध्य सही है । साधन की प्रक्रिया साध्य के प्रति भ्रम उत्पन्न करती है। संयम को बनाए रखने के लिए हिंसात्मक साधन करते जाएं, वहां संयम नहीं रहता। इसलिए संयम को बनाए रखने के लिए हिंसात्मक साधनों को अपनाना मानसिक भ्रम जैसा लगता है। जीवन को बनाए रखने का उद्देश्य मुख्य होने पर हिंसा से बचाव करने की बात गौण हो जाती है संयम जीवन से अलग नहीं होता । संयम को बनाए रखने के साथ जीवन का अस्तित्व अपने आप आता है । जीवन को बनाए रखने के साथ संयम का अस्तित्व स्वयं नहीं आता है। इसलिए अहिंसा का रूप जीवन अस्तित्व को प्रधानता नहीं देता । उसमें संयम की प्रधानता होती है । संयम को बनाए रखने के लिए हिंसा से बचाव करना, यह सही है किन्तु हिंसा से कैसे बचा जाए, उसका विवेक होना चाहिए। हिंसा से बचाव करने के लिए हिंसात्मक साधन अपनाए जाएं, वहां न संयम बना रहता है और न हिंसा से बचाव होता है । इसलिए चौथा विकल्प भी आत्म-रक्षा की भावना नहीं देता । पांचवें विकल्प में साधन-पद्धति को छोड़ शेष अहिंसा की दृष्टि के अनुकूल नहीं हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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