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________________ MA अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग धार्मिक उपदेश काम न करे और मौन न रखा जा सके, उस स्थिति में वहां से हटकर एकान्त में चले जाना, यह तीसरा साधन है। भगवान् महावीर ने हिंसा से बचने के ये तीन साधन बताए हैं। ये तीनों अहिंसात्मक हैं, इसलिए आत्म-रक्षा की मर्यादा के अनुकूल हैं। अहिंसात्मक साधनों द्वारा कष्टों से बचाव किया जा सकता है, हिंसा से नहीं। हिंसक के प्रति हिंसा बरतना, बल प्रयोग करना, प्रलोभन देना-यह अहिंसा की मर्यादा में नहीं आता। अहिंसा की मर्यादा है कि अहिंसक हर स्थिति में अहिंसक ही रहे । वह किसी भी स्थिति में हिंसा की बात न सोचे । अहिंसक पद्धति से हिंसा का विरोध करना अहिंसा-धर्मी का कर्तव्य है। वह अहिंसा के लिए अपने प्राणों का त्याग कर सकता है परन्तु अहिंसा के लिए हिंसा का मार्ग नहीं अपना सकता। दोनों प्रकार की रक्षा के आठ विकल्प बनते हैं : 1. जीवन को बनाए रखने के लिए हिंसात्मक पद्धति द्वारा कष्ट से बचाव। 2. संयम को बनाए रखने के लिए हिंसात्मक पद्धति द्वारा कष्ट से बचाव । 3. जीवन को बनाए रखने के लिए हिंसात्मक पद्धति द्वारा हिंसा से बचाव। 4.संयम को बनाए रखने के लिए हिंसात्मक पद्धति द्वारा हिंसा से बचाव। 5. जीवन के लिए अहिंसात्मक पद्धति द्वारा कष्ट से बचाव। 6.संयम के लिए अहिंसात्मक पद्धति द्वारा कष्ट से बचाव। 7. जीवन के लिए अहिंसात्मक पद्धति द्वारा हिंसा से बचाव । 8.संयम के लिए अहिंसात्क पद्धति द्वारा हिंसा से बचाव। इनमें पहले चार विकल्प शरीर-रक्षा के हैं। विकल्प एक-जीवन को बनाए रखना- यह अहिंसा का उद्देश्य नहीं है। उसका उद्देश्य है- संयम का विकास करना। संयम का विकास जीवन-सापेक्ष है। जीवन ही न रहे, तब संयम का विकास कौन करे ? अत: संयम का विकास करने के लिए जीवन को बनाए रखना आवश्यक है। इस प्रकार जीवन को बनाए रखना भी अहिंसा का उद्देश्य है-यह फलित होता है। यह प्रश्न हो सकता है किन्तु अहिंसा का सीधा संबंध संयम से है, इसलिए इसे कोई महत्त्व नहीं दिया जा सकता। जीवन बना रहे और संयम न हो तो वह अहिंसा नहीं होती। संयम की सुरक्षा में जीवन चला जाए तो भी वह अहिंसा है। आगे के संयम के लिए वर्तमान का असंयम संयम नहीं बनता। आगे की अहिंसा के लिए वर्तमान की हिंसा अहिंसा नहीं बनती। इसलिए जीवन को बनाए रखना-यह अहिंसा का साध्य या उद्देश्य नहीं हो सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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