________________
219
अनुप्रेक्षाएं
6. आत्म-तुला की अनुप्रेक्षा प्रयोग विधि 1. महाप्राण ध्वनि
2 मिनट 2. कायोत्सर्ग
5 मिनट 3. शांति केन्द्र पर सफेद रंग का ध्यान करें-- (क) अनुभव करें-- अपने चारों ओर सफेद रंग के परमाणु फैले हुए हैं।
सफेद रंग का श्वास लें। अनुभव करें-प्रत्येक श्वास के साथ सफेद . रंग के परमाणु भीतर प्रवेश कर रहे हैं।
3 मिनट (ख) अब अपने चित्त को शान्ति-केन्द्र पर केन्द्रित करें। और वहां पर अरुण रंग का ध्यान करें।
3 मिनट 4. शान्ति-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर आत्मतुला की अनुपेक्षा करें-- वह तू ही है जिसे तू तिरस्कृत करना चाहता है।
वह तू ही है जिसे तू संताप देना चाहता है। - वह तू ही है जिसे तू मारना चाहता है
-इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें। फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें। 10 मिनट 5. अनुचिन्तन करेंतिरस्कार किसी को भी पसंद नहीं है। संताप किसी को भी प्रिय नहीं है। कोई भी मरना नहीं चाहता।
"क्या विषमता-पूर्ण व्यवहार करना सामाजिक जीवन के प्रति अन्याय नहीं है ?"
"क्या क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं होती? यदि होती है, तो मुझे विषमतापूर्ण व्यवहार से बचना है।"
10 मिनट 6. महाप्राणध्वनि के साथ प्रयोग सम्पन्न करें 2 मिनट
स्वाध्याय और मनन (अनुप्रेक्षा के बाद स्वाध्याय और मनन आवश्यक है।) तराजू के दो पल्ले
तुला प्रतिष्ठित है। वह तौलने वाला बहुत बड़ा है, जो दूसरों को तौल सके। तराजू के साथ समता की बात जुड़ी हुई है, न्याय की बात जुड़ी हुई है। तराजू के दोनों पल्ले समान होने चाहिए। समता के लिए तराजू की उपमा प्रयुक्त हुई है और न्याय के लिए भी तराजू की उपमा प्रयुक्त होती रही है। यद्यपि हमारे कवियों ने तुला में भी दोष देखा है- हे तुला ! तुम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org