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अनुप्रेक्षाएं अपराध को पकड़ने का वैज्ञानिक उपकरण
काव्य-शास्त्र में इस भाव-धारा का बहुत विशद विवेचन हुआ है। तीन भावधाराएं हैं---स्थायीभाव, सात्विकभाव और संचारीभाव। किस मुद्रा में कौन से भाव जन्म लेते हैं ? व्यक्ति किस रूप में प्रकट होता है ? यह सारा ज्ञात हो जाता है। श्रृंगार रस की एक मुंद्रा होती है, करुण-रस की दूसरी मुद्रा होती है, बीभत्स-रस की तीसरा मुद्रा होती है, रौद्र-रस की चौथी मुद्रा होती है, शांत-रस की पांचवी मुद्रा होती है। अलगअलग मुद्राएं होती हैं। प्रत्येक भाव और प्रत्येक रस की भिन्न मुद्रा होती है। रसानुभूति, भावानुभूति और मुद्रा सब जुड़े हुए हैं। हमारी मुद्रा का संबंध भाव से जुड़ा हुआ है। भय की भावधारा होती है तो एक प्रकार की मुद्रा बनती है। डरा हुआ आदमी सिकुड़ जाता है। चेहरा सिकुड़ता भी है और फैलता भी है। हमारा शरीर सिकुड़ता भी है और फैलता भी है । भय से सिकुड़ता है और हर्ष से फैल जाता है। हर्षोत्फुल्ल मुख पुष्प की भांति खिल जाता है, भयभीत मुख बिलकुल सिकुड़ जाता है। ऐसा लगता है कि बिलकुल पतला-दुबला हो गया है। भय की मुद्रा होती है, उस समय बाहर आकृति में जो परिवर्तन होते हैं वे हमारे सामने स्पष्ट होते हैं। अन्तर् के अवयवों में भी परिवर्तन होते हैं। हृदय की धडकन तेज हो जाती है, रक्तचाप बढ़ जाता है, गला सूख जाता है, लार टपकाने वाली ग्रन्थियां निष्क्रिय बन जाती हैं। मुख सूखने लग जाता है, आमाशय और
आंतें सिकुड़ जाती हैं, भूख भी कम हो जाती है। जो आदमी रोज डरा-डरा रहता है, उसकी भूख भी कम हो जाती है। त्वचा की संवाहिता में अन्तर आ जाता है, त्वचा सूक्ष्मग्राही बन जाती है।
किसी आदमी ने झूठ बोला, किसी ने अपराध किया, न्यायाधीश के सामने उपस्थित किया, उसे डर है कि मेरा झूठ पकड़ा न जाए। अब न्याय करने वालों को कैसे पता चले कियह झूठ बोल रहा है? आजकल कुछ यंत्रों का विकास हुआ है। अपराधी खड़ा है और यंत्र चल रहा है,गेल्वेनोमीटर की सूईघूम रही है। यंत्र लगा दिया गया है। अब उसके मन में है, कहीं पकड़ा न जाऊं । भय से उत्तेजना है। अन्तर् अवयवों में उत्तेजना पैदा हो गयी। वह गेल्वेनोमीटर बता देगा की यह झूठ बोल रहा है। वह बता देगा कि इसने अपराध किया है। यह सारा होता है त्वचा-संवाहिता केद्वारा । त्वचा-संवाहिता का मापन होता है और इस सचाई का पता चल जाता है। क्रोध का संवेग, भय का संवेग या दूसरे किसी प्रकार के संवेग की अवस्था में हमारी बाहर की मुद्रा भी भिन्न बनती है और भीतर की मुद्रा भी भिन्न बन जाती है। दोनों का पता लगाया जा सकता है। एक आदमी एक दिन में शायद सैकड़ोंसैकड़ों मुद्राएं बना लेता है। यदि कोई सूक्ष्म यंत्र या ऐसा संवेदनशील कैमरा हो हाईफ्रिक्वेंसी का, तो प्रत्येक मुद्रा का भेद मापा जा सकता है। पांच मिनट पहिले जो मुद्रा थी, पांच मिनट बाद रहने वाली नहीं है । और इसी आधार पर मुखाकृति-विज्ञान का विकास हुआ है। आकति-विज्ञान के आधार पर मनुष्य की सारी चेष्टाओं को बताया जा सकता है, उसके भविष्य का भी निर्धारण किया जा सकता है।
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