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समय
अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
एक मिनट से पांच मिनट तक। साधना में विकास की दृष्टि से 45 मिनट का अभ्यास किया जा सकता है। श्वास-प्रश्वास मन्द और शान्त रखें ।
लाभ
कायोत्सर्ग शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनावों से मुक्ति प्रदान करता है । भगवान् महावीर ने कायोत्सर्ग को समस्त दुःखों से मुक्ति प्रदान करने वाला बताया है “सव्वदुक्खोविमोक्खाणं काउस्सग्गं" । इससे प्रत्येक अवयव में स्फूर्ति उत्पन्न होती है । कायोत्सर्ग से देह एवं बुद्धि की जड़ता नष्ट होती है, एकाग्रता बढ़ती है, कलह उपशान्त होता है ।
अभ्यास द्वितीय
1. पुनरावर्तन
निम्नलिखित आसनों का पुनः अभ्यास करें
1. उत्तानपादासन
2. वज्रासन 3. सुप्तवज्रासन 4. सुखासन 5. पद्मासन 6. समपादासन 7. ताड़ासन 8. त्रिकोणासन
2. आसन : क्या और क्यों ?
आसन केवल शारीरिक क्रिया मात्र नहीं है, उसमें अध्यात्म-निर्माण के बीज छुपे हैं। आसन अध्यात्म-प्रवेश का प्रथम द्वार है । आसन शरीर की क्रियाओं को ही व्यवस्थित नहीं बनाता अपितु वाक् और मन को भी स्थिरता प्रदान करता है। प्रेक्षा स्वरूप-उपलब्धि की प्रक्रिया है । व्यक्ति मूढ़ता से बहिर्यात्रा करने लगता है । बहिर्मुखी वृत्ति ही व्यक्ति को स्वरूप से दूर ले जाती है। स्वरूप की दूरी ही आधि-व्याधि और असमाधि का कारण बनती है। प्रेक्षा साधना सर्वांगीण पद्धति है । इसमें जहां अध्यात्म के शिखरों की चर्चा है, वहां शरीर शुद्धि, श्वास और प्राणशुद्धि के लिए आसन और प्राणायाम का भी विधिवत् प्रशिक्षण दिया जाता है।
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आसन के लिए प्रयुक्त होने वाले वस्त्र आदि को भी आसन की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। ये आसन सूत, कुशा, तिनके, ऊन आदि के होते हैं । ऊन का आसन श्रेष्ठ माना जाता है। आसन शरीर की सहज स्थिति के लिए है। हठयोग में आसनों के असंख्य प्रकार बताए गये हैं । जीव-योनियों के समान आसनों की संख्या भी चौरासी लाख है । इनमें चौरासी आसनों की प्रधानता रही है । शरीर की स्थिर स्थिति को जैन परम्परा में 'कायगुप्ति' कहा है ।
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