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अहिंसक समाज- संरचना
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3. गलत मूल्यों की स्थापना। 4. श्रम का अवमूल्यन। 5. नैतिकता का अवमूल्यन। अहिंसक समाज में इन तत्त्वों को विकसित होने का अवसर मिलता है: 1. अर्थार्जन के साधनों की शुद्धि। 2. सत्ता का विकेन्द्रीकरण। 3. मूल्यों की यथार्थता। 4. श्रम का उचित मूल्यांकन। 5. नैतिकता संबन्धी विवेचन यहां अपेक्षित है। 6. कर्तव्य की प्रेरणा।
7. स्वार्थ का विसर्जन या स्वार्थ-सन्तुलन । व्यक्ति और समाज
व्यक्ति और समाज, ये दो सापेक्ष इकाइयां हैं। व्यक्ति समाज का घटक और समाज व्यक्ति के हितों का संरक्षक है। व्यक्ति-विहीन समाज अस्तित्व में नहीं आता और समाज-विहीन व्यक्ति अपने अस्तित्व को सुरक्षित नहीं रख पाता। समुद्र जल बिन्दुओं की संहति के सिवाय और कुछ नहीं है, पर उससे बिछुड़े हुए जलबिन्दु को भूमि सुखा देती है।
व्यक्ति का जिस दिन समाजीकरण हुआ, उसी दिन उसने विकास की दहलीज पर पैर रख दिये। वह प्रस्तर-युग से आज अणु-युग तक पहुंच गया है।
___ व्यक्ति और समाज- ये दोनों परिवर्तमशील सत्ताएं हैं । संस्कार, सिद्धान्त और परिस्थिति के आधार पर ये बदलते रहते हैं। सिद्धान्त और परिस्थिति समाजीकृत होते हैं, इसलिए इनका प्रभाव व्यापक होता है। संस्कार व्यक्तिगत होते हैं, इसलिए वे व्यक्ति को ही प्रभावित करते हैं । व्यक्ति के जीवन पर संस्कार, सिद्धान्त और परिस्थिति- तीनों प्रभाव डालते हैं। समाज को प्रभावित करने वाले दो तत्त्व हैं- सिद्धान्त और परिस्थिति। अहिंसा-संस्कार-परिवर्तन की प्रक्रिया
कुछ दार्शनिक मानते हैं कि परिस्थिति के परिवर्तन से समाज परिवर्तित होता है और समाज के परिवर्तन से व्यक्ति परिवर्तित होता है। व्यक्ति और समाज के बाहा व्यवहार के परिवर्तन में यह बात घटित हो सकती है, किन्तु व्यक्ति के आन्तरिक परिवर्तन में यह घटित नहीं होती। साम्यवादी देशों में एक विशेष सिद्धान्त और परिस्थिति का निर्माण हुआ है। उनके अनुसार वहां अर्थ पर होने वाला व्यक्तिगत स्वामित्व प्रतिबद्ध है। क्या इस प्रतिबद्धता को साम्यवादी देशों की जनता ने हृदय से
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