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अणुव्रत आन्दोलन
अनैतिकता की समस्या को सुलझाने के दो विकल्प हैं- या तो ममत्व का विसर्जन या ममत्व का विस्तार। आदमी उन भावनाओं और व्यक्तियों के लिए अनैतिक व्यवहार करता है, जिन्हें अपना मान रखा है। उन पर से ममत्व हटा लेने का अर्थ होता है, अनैतिकता के जाल से स्वयं को मुक्त कर लेना । हिन्दुस्तान में व्रत की दीक्षा इसी ममत्व - विसर्जन की प्रक्रिया के संदर्भ में प्रचलित हुई थी । साम्यवादी देशों ने कानूनन ममत्व विसर्जन कराकर आर्थिक क्षेत्र की अनैतिकता के उन्मूलन का प्रयत्न किया है। लोकतंत्री समाजवाद भी उसी क्षितिज की ओर आगे बढ़ रहा है।
ममत्व - विस्तार का मंत्र हमारे धर्मशास्त्रों ने दिया था। सब जीवों का अस्तित्व वैसा ही है जैसा कि मेरा है। समूचा संसार ही मेरा परिवार है। ये उसके निष्ठा-सूत्र हैं। यहां ममत्व की रेखाएं बहुत व्यापक हो जाती हैं। फिर उनसे बाहर कोई नहीं रहता । फलस्वरूप अनैतिक व्यवहार के लिए कोई अवकाश ही नहीं रहता ।
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समस्या का मूल
कुछ लोग कहते हैं, अनैतिकता का मूल गरीबी है। कुछ लोगों का मत है कि उसका मूल अशिक्षा है। कुछ लोगों की धारणा में उसका मूल है व्यक्तिवादी दृष्टिकोण और कुछ लोगों की धारणा में उसका मूल है भौतिकवादी दृष्टिकोण। मैं इन तथ्यों को अस्वीकार नहीं करता। फिर भी यह स्वीकार करने में असमर्थ हूं कि ये अनैतिकता के मूल कारण हैं। एक गरीब आदमी को हमने ईमानदार देखा है और यह भी देखा है कि जो बहुत संपन्न है वह बहुत बेईमान है। क्या यह सच नहीं है कि गरीब आदमी बहुत बड़ी बेईमानी कर ही नहीं सकता। बहुत बड़ी बेईमानी वही कर सकता है जिसके पास बहुत बड़े साधन होते हैं ।
की भाषा में यह कहना चाहता हूं कि अनैतिक न गरीब होता है और न संपन्न होता है। अनैतिक वह होता है, जिसमें निष्ठा का अभाव हो । निष्ठा - शून्य विपन्न आदमी भी अनैतिक होता है और निष्ठा - शून्य संपन्न आदमी भी अनैतिक होता है।
अनैतिक न अशिक्षित होता है न शिक्षित होता है। अनैतिक वह होता है जिसमें निष्ठा का अभाव है । निष्ठाशून्य अशिक्षित आदमी भी अनैतिक होता है और निष्ठाशून्य शिक्षित आदमी भी अनैतिक होता है ।
अनैतिक न व्यक्तिवादी या भौतिकवादी दृष्टि वाला होता है और न समाजवादी या धार्मिक दृष्टि वाला होता है। अनैतिक वह होता है, जिसमें निष्ठा का अभाव है, निष्ठाशून्य व्यक्तिवादी या भौतिकवादी दृष्टि वाला भी अनैतिक होता है और निष्ठाशून्य समाजवादी या धार्मिक दृष्टि वाला भी अनैतिक होता है ।
जिस आदमी में निष्ठा का बीज अंकुरित हो जाता है वह गरीब हो या संपन्न, अशिक्षित हो या शिक्षित, व्यक्तिवादी हो या समाजवादी, भौतिकवादी हो या धार्मिक, नैतिक होता है ।
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