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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग सायंकाल सात से नौ बजे तक हृदय की झिल्ली रात्रि में नौ से ग्यारह बजे तक श्वसनतंत्र, पाचनतंत्र, उत्सर्जनतंत्र रात्रि में ग्यारह से एक बजे तक मूत्राशय रात्रि में एक से तीन बजे तक यकृत
___प्राण और श्वास- ये दो मस्तिष्क नियंत्रण के लिए बहुत उपयोगी तत्त्व हैं। प्राण हमारी जैविक शक्ति है। उसके द्वारा हमारा शरीर, वाणी, मन, श्वासोच्छ्वास इंद्रियां और जीवन संचालित है। श्वास प्राणशक्ति द्वारा ग्रहण की जाने वाली पौद्गलिक वर्गणा है। इन दोनों के नियमों को समझकर मस्तिष्क की शक्तियों का अनपेक्षित उपयोग किया जा सकता है।
वैज्ञानिक जैविक घड़ी के बारे में जो खोज कर रहे हैं, वह खोज योग और अध्यात्म के क्षेत्र में स्वरचक्र और ऋतुचक्र के नाम से हुई थी। वर्ष में छह ऋतुएं होती हैं। उन ऋतुओं में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर मनुष्य बदलता रहता है। यह एक स्थूल तथ्य है। मनुष्य प्रतिदिन बदलता है। उसका स्वभाव जैसा प्रात:काल होता है, वैसा मध्याह्न में नहीं होता। जैसा मध्याह्न में होता है, वैसा सायंकाल नहीं होता। इस परिवर्तन का हेतु ऋतुचक्र है। प्रत्येक मनुष्य एक दिन में पूरे ऋतुचक्र का अनुभव करता हैप्रथम प्रहर
बसंत मध्याह्न अपराह्न
प्रावृट् संध्या आधी रात
शरद अपर रात्रि
हेमन्त ऋतुचक्र में होने वाले परिवर्तन इस दैनिक ऋतुचक्र में भी होते हैं। समूचे दिन एक जैसा मूड नहीं रहता। उसका हेतु यह ऋतुचक्र है। मस्तिष्क की क्रिया स्वरचक्र, प्राणचक्र, समयचक्र और ऋतुचक्र सापेक्ष है। इस सापेक्षता को समझकर सफलता की दिशा में चरण आगे बढ़ाए जा सकते हैं।
अभ्यास 1. सहअस्तित्त्व के लिए अनेकांत की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए
बतायें कि जीवन में उसे कैसे अवतरित किया जा सकता है ? 2. आर्थिक साम्य के लिए अहिंसा की उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डालें? 3. समाज विकास के लिए भावात्मक स्वास्थ्य क्यों जरूरी है तथा उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
ग्रीष्म
वर्षा
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