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________________ अहिंसा और शान्ति 95 जब आदमी गुस्से में होता है, उसका सारा चिंतन और सारा व्यवहार बदल जाता है। वह चिड़चिड़ा हो जाता है । स्वभाव भी विचित्र प्रकार का होने लग जाता है। भावनात्मक स्वास्थ्य का एक सूत्र है- हम अपने संवेगों के प्रति जागरूक रहें। कौन सा संवेग बार-बार उद्दीप्त हो रहा है ? उस संवेग का मेरे ऊपर क्या प्रभाव होगा? यदि संवेग के प्रति जागरूकता की बात आती है तो स्वभाव को बदलने में, भावनात्मक स्वास्थ्य को अच्छा बनाने में सुविधा हो जाती है। पाचनक्रिया और स्वभाव स्वभाव के साथ संबंध है पाचनक्रिया का। जिस व्यक्ति की पाचन-क्रिया ठीक नहीं होती, वह भावनात्मक स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रख सकता। सीधा सम्बन्ध लगता है-पाचनक्रिया ठीक नहीं है तो शारीरिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा। पाचन ठीक नहीं होगा तो चयापचय की क्रिया ठीक नहीं होगी किन्तु इसका भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी बहुत असर होता है। जिस व्यक्ति का पाचन ठीक नहीं है उसका स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है। बहुत सारे लोग चिड़चिड़े होते हैं, बात-बात पर चिड़ जाते हैं। छोटी-सी बात होती है और चिड़ जाते हैं, हर बात पर चिड़ना उनका स्वभाव ही बन जाता है। अच्छी बात से भी चिड़ जाते हैं और बुरी बातों से तो चिड़ते ही है। यह पाचन क्रिया का दोष है। पाचन ठीक नहीं होता है तो चिड़चिड़ापन आ जाता है। __ स्वास्थ्य के साथ पाचन क्रिया का बहुत गहरा सम्बन्ध है । भावात्मक स्वास्थ्य का दूसरा बिन्दु है पाचनक्रिया के प्रति जागरूक रहना । यह भी प्रकारान्तर से धर्म का एक सूत्र है। जिसका पाचन-तंत्र और उत्सर्जन तंत्र स्वस्थ नहीं होता, वह स्वभाव से भी स्वस्थ नहीं होता। पाचन-तंत्र ठीक नहीं होता है तो स्वभाव में विकृतियां आ जाती हैं। खाते खूब हैं किन्तु सफाई होती नहीं है। मल का निष्कासन ठीक प्रकार से नहीं होता है, कब्ज रहता है, कोष्ठबद्धता रहती है तो सारा स्वभाव गड़बड़ा जाता है। उदासी, बेचैनी और गुस्सा ज्यादा आना, बुरी बात सोचना, बुरे विचार आना, बुरी कल्पना करना, हत्या या मारकाट का विचार आना- इस प्रकार के विचार आने लग जाते हैं। हमें जागरूक होना है इन दो तंत्रों के प्रति- पाचन-तंत्र के प्रति और उत्सर्जन तंत्र के प्रति । कुछ लोग इसमें जागरूक नहीं होते। उनका दिमाग भी ठीक काम नहीं करता। स्मृति भी ठीक काम नहीं करती। स्मृति-दोष और उत्सर्जन तंत्र में बहुत गहरा संबंध है। प्रसन्नता से भी उसका बहुत गहरा संबंध है। हमारा जितना ध्यान खाने पर केन्द्रित है उतना उत्सर्जन पर केन्द्रित नहीं है। होना तो यह चाहिए कि खाने की अपेक्षा उत्सर्जन पर अधिक ध्यान केन्द्रित हो। ऐसा होगा तो भावशुद्धि भी रहेगी, विचारशुद्धि भी रहेगी और बुरे विचार, बुरी कल्पना और बुरे स्वप्न भी नहीं आएंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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