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अहिंसा और शान्ति
अच्छा बन जाता है, प्रश्न है जागरूकता का । हम संवेगों को जानते ही नहीं हैं और जान जाते हैं तो जागरूक नहीं होते, समझ नहीं पाते ।
बच्चा आया दादा के पास और बोला- डुगडुगी वाला आया है। मुझे भी एक ले दो । दादा बोला- ठीक नहीं है, नहीं लेनी है। तू बार-बार बजाएगा और मेरी नींद में बाधा डालेगा। मैं नहीं खरीदूंगा। बच्चे ने कहा- आप इस बात की चिंता न करें। जब तक आप जागते रहेंगे मैं उसे नहीं बजाऊंगा। आप जब सो जाएंगे तभी उसे बजाऊंगा । हम ठीक समझ ही नहीं पाते। बेचारे दादा ने कहा था तू मेरी नींद में बाधा डालेगा और बच्चे ने कहा- जब आप जागेंगे तब तक बजाऊंगा ही नहीं । जब आप सो जाएंगे तभी बजाऊंगा ।
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हम समझ नहीं पाते हैं इस सचाई को कैसे संवेग से छुटकारा पाया जा सकता है और कैसे स्वभाव को बदला जा सकता है। धर्म के क्षेत्र में एक बात कही जाती हैनिरंतर अपने इष्ट का स्मरण करें, अपने गुरु का स्मरण करें। किसी पवित्र भाव को बराबर बनाए रखें। बात बहुत छोटी सी लगती है किन्तु मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यदि हम विचार करें तो यह बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है। बहुत बार बहुत गहरा सूत्र देना भी कठिनाई पैदा करता है। सूत्र तो गहरा दे दिया और पकड़ने वाला उसे नहीं पकड़ पा रहा है, बात अधर में लटक जाती है। यह सूत्र इसलिए दिया कि दिन भर में जितने समय तुम अपने इष्ट का, अपने गुरु का, अपने मंत्र का जप करोगे, उनका ध्यान करोगे । उसका अर्थ होगा - तुम्हारे संवेग अच्छे रहेंगे, तुम्हारी भावना अच्छी रहेगी। कोई भी बुरा संवेग तुम्हारे पास नहीं आएगा। तुम्हारे स्वभाव का बुरा निर्माण नहीं होगा। जिस भाव में जीओगे वैसे बनोगे । एक पवित्र भाव रहता है तो स्वभाव पवित्र बन जाता है, अपने आप बुरा स्वभाव बदल जाता है। जो व्यक्ति अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त शक्ति और अनन्त आनन्द- इस चतुष्टयी की स्मृति में जीता है उसका स्वभाव इतना बढ़िया होता है कि वह अपने लिए और दूसरों के लिए कोई भी खतरनाक काम नहीं कर सकता, समस्या पैदा करने वाला काम नहीं कर सकता। जो आनन्द में जी रहा है वह दूसरे को सताएगा नहीं, दुःख नहीं देगा और न स्वयं ही दुःखी बनेगा । वह अपनी चेतना में जिएगा और जब वह चेतना में जिएगा तो कोई भी मूर्खतापूर्ण काम नहीं करेगा।
स्वभाव निर्माण की प्रक्रिया
सत्, चित् और आनन्द- ये तीन बहुत प्रचलित शब्द हैं। जो सत् में जीता है, चित् में जीता है और आनन्द में जीता है, उनकी अनुभूति रखता है, बारबार स्मृति रखता है, वह अपने ऐसे स्वभाव का निर्माण करेगा, जिस स्वभाव से सत् निकलेगा, चित् निकलेगा और आनन्द निकलेगा । उसमें से असत्, अचित् और दुःख नहीं निकलेगा और दूसरों के लिए भी वह खतरनाक नहीं बनेगा । शंकराचार्य के अनुसार जिसमें ये पुण्यत्रय हैं वही ब्रह्म है ।
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