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________________ अहिंसा और शान्ति 85 ... गरीबों में भी यह धारणा व्यापक बनी हुई है। बहुत सारे गरीब इसी धारणा के आधार पर अपना शांत जीवन चला रहे हैं। वे कहते हैं- हमने पूर्व जन्म में ऐसी ही कर्म किए हैं, अतः उन्हें भुगत रहे हैं। बहुत बार प्रश्न होता है कि हिन्दुस्तान में आर्थिक क्रांति क्यों नहीं हुई ? इतनी गरीबी होने के बाद भी साम्यवाद क्यों नहीं फैला ? उसका एक अवरोधक कारण है। यहां के आम आदमी के मन में एक धारणा जमी हुई है कि गरीबी मेरे कर्म का फल है, भाग्य का फल है। यदि यह धारणा नहीं होती तो शायद आज से पहले ही रक्तक्रांति का प्रश्न प्रस्तुत हो जाता। इस धारणा ने एक रुकावट पैदा कर रखी है। शोषण के साथ भी यह भाग्यवादी या कर्मवादी अवधारणा जुड़ी हुई है। अपराध का कारण : आर्थिक असंतुलन __आर्थिक जीवन का सातवां पहलू है- अपराध । मनोविज्ञान में अपराध के अनेक कारण बतलाए गए हैं। उनमें एक है- आर्थिक असंतुलन । आर्थिक क्षेत्र में बढ़ती हुई स्पर्धा ने अपराध को पनपने का अवसर दिया है। एक आदमी दूसरे से आगे बढ़ना चाहता है। अर्थ की इस स्पर्धा से अपराध को पल्लवन मिला है। एक बड़े उद्योगपति से व्यक्तिगत बातचीत में मैंने पूछा- तुमने इतना अत्याचार क्यों किया? इतने अतिक्रमण क्यों किए ? इतने जघन्य काम क्यों किए ? इतने अपराध क्यों किए ? उसने बहुत साफ-साफ कहा- जब मैं उद्योग में सफल होता गया तो मेरे मन में एक भावना जागी। मैंने निर्णय किया- मुझे हिन्दुस्तान का प्रथम नम्बर का उद्योगपति बनना है। इस भावना ने मुझसे ये सारे अपराध करवाए। __आर्थिक प्रतियोगिता ने अपराध को जन्म दिया है और इस आर्थिक प्रतियोगिता के कारण ही नैतिक-अनैतिक जैसी अवधारणाएं ही समाप्त हो गई हैं। कोई भी आदमी अनैतिक आचरण करने में सकुचाता नहीं। उसके दिमाग में केवल यही बात घूमती है कि मैं सबको पीछे छोड़कर आगे चला जाऊं। निर्धनता भी अपराध का कारण निर्धनता भी अपराध का कारण है। गरीबी के कारण भी आदमी अपराध करता है। सारे निर्धन या गरीब आदमी अपराध नहीं करते। निर्धन आदमी बडे ईमानदार और नैतिक होते हैं किन्तु अपराध का एक कारण निर्धनता या गरीबी भी है, इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता। अपराध का एक कारण बेरोजगारी है। रोजी-रोटी का कोई साधन उपलब्ध नहीं होता है तो व्यक्ति अपराध में चला जाता है। एक चोर से पूछा गया- तुम चोरी क्यों करते हो? उसने कहा- चोरी करना मेरी आदत नहीं है। मैं चोरी करना भी नहीं चाहता। किन्तु कोई रोजगार का साधन नहीं है, कोई काम-धंधा नहीं मिल रहा है। इस स्थिति में मैं क्या करूं? बाल-बच्चों का भरण-पोषण कैसे हो? यह बेरोजगारी मुझसे चोरी करवाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003061
Book TitleAhimsa aur Anuvrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size12 MB
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