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________________ आत्मविद्या : क्षत्रियों की देन मैं जानता हूं।"" सब वेदों को जान लेने पर भी आत्मविद्या का ज्ञान नहीं होता था, उसका कारण मुण्डकोपनिषद् से स्पष्ट होता है । शौनक ने अंगिरा के पास विधिपूर्वक जाकर पूछा - "भगवन् ! किसे जान लेने पर सब कुछ जान लिया जाता है ?" अंगिरा ने कहा - " दो विद्याएं हैं - एक 'परा' और दूसरी 'अपरा' | ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष --- यह 'अपरा' विद्या है तथा जिससे उस अक्षर परमात्मा का ज्ञान होता है, वह 'परा' विद्या है ।' इस 'परा' विद्या को वेदों से पृथक् बतलाने का तात्पर्य यही हो सकता है कि वैदिक ऋषि इसे महत्त्व नहीं देते थे । १२ श्रमण परम्परा और क्षत्रिय श्रमण परम्परा में क्षत्रियों की प्रमुखता रही है और वैदिक परम्परा में ब्राह्मणों की । भगवान् महावीर का देवानन्दा की कोख से त्रिशला क्षत्रियाणी की कोख में संक्रमण किया गया, यह तथ्य श्रमण परम्परा सम्मत क्षत्रिय जाति की श्रेष्ठता का सूचक है ।" महात्मा बुद्ध ने कहा था— " वाशिष्ठ ! ब्रह्मा सनत्कुमार ने भी गाथा कही है 1 'गोत्र लेकर चलने वाले जनों में क्षत्रिय श्रेष्ठ हैं । जो विद्या और आचरण से युक्त हैं, वह देव मनुष्यों में श्रेष्ठ हैं ।' " वाशिष्ठ ! यह गाथा ब्रह्मा सनत्कुमार ने ठीक ही कही है, बे-ठीक नहीं कही। सार्थक कही, अनर्थक नहीं। इसका मैं भी अनुमोदन करता हूं।" ८३ क्षत्रिय की उत्कृष्टता का उल्लेख बृहदारण्यकोपनिषद् में भी मिलता है । वह इतिहास की उस भूमिका पर अंकित हुआ जान पड़ता है जब क्षत्रिय और ब्राह्मण एक दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी हो रहे थे । वहां लिखा है - " आरम्भ में यह एक ब्रह्म ही था । अकेले होने के कारण वह विभूतियुक्त कर्म करने में समर्थ नहीं हुआ । उसने अतिशयता से 'क्षत्र' - इस प्रशस्त रूप की रचना की अर्थात् देवताओं में जो क्षत्रिय, इंद्र, १. छान्दोग्योपनिषद्, ७।१।१,२ । २. मुण्डकोपनिषद्, १११।३-५ । ३. कल्पसूत्र, २०-२५ । ४. दीघनिकाय, ३४, पृ० २४५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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