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________________ ૫૪ का मुख क्या है ? धर्मों का मुख क्या है, तुम्हीं बताओ । 'जो अपना और पराया उद्धार करने में समर्थ हैं तुम्हीं कहो ) । हे साधु ! यह मुझे सारा संशय है, तुम समाधान दो । संस्कृति के दो प्रवाह ( उनके विषय में मेरे प्रश्नों का 'वेदों का मुख अग्निहोत्र है । यज्ञों का मुख यज्ञार्थी है । नक्षत्रों का मुख चन्द्रमा है और धर्मों का मुख काश्यप ऋषभदेव हैं ।' 'जिस प्रकार चन्द्रमा के सम्मुख ग्रह आदि हाथ जोड़े हुए, वंदनानमस्कार करते हुए और विनीत भाव से मन का हरण करते हुए रहते हैं उसी प्रकार भगवान् ऋषभ के सम्मुख सब लोग रहते थे ।' 'जो यज्ञवादी हैं, ने ब्राह्मण की सम्पदा से अनभिज्ञ हैं । वे बाहर में स्वाध्याय और तपस्या से उसी प्रकार ढंके हुए हैं, जिस प्रकार अग्नि राख से ढंकी हुई होती है ।' 'जिसे कुशल पुरुषों ने ब्राह्मण कहा है, लोक में पूजित हैं, उन्हें हम कुशल पुरुष द्वारा हैं ।' जो अग्नि की भांति सदा कहा हुआ ब्राह्मण कहते जो आने पर आसक्त नहीं होता, जाने के जो आर्य-वचन में रमण करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । समय शोक नहीं करता, Jain Education International 'अग्नि में तपा कर शुद्ध किए हुए और घिसे हुए सोने की तरह जो विशुद्ध है तथा राग-द्वेष और भय से रहित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ।' 'जो त्रस और स्थावर जीवों को भली-भांति जान कर, मन, वाणी और शरीर से उनकी हिंसा नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ।' 'जो क्रोध, हास्य, लोभ या भय के कारण असत्य नहीं बोलता उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । 'जो सचित्त या अचित्त — कोई भी पदार्थ, थोड़ा या अधिक, कितना ही क्यों न हो, उसके अधिकारी के दिए बिना नहीं लेता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ।' 'जो देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी मैथुन का मन, वचन और शरीर से सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ।' ' जिस प्रकार जल में उत्पन्न हुआ कमल जल से लिप्त नहीं होता, इसी प्रकार कामभोग के वातावरण में उत्पन्न हुआ जो मनुष्य उनसे लिप्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ।' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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