________________
५०
संस्कृति के दो प्रवाह लिए कल्पित ये नाम-गोत्र व्यवहार से चले आए हैं। मिथ्याधारणा वाले अज्ञों (के मन) में ये (नाम) घर कर गए हैं। (इसीलिए) अज्ञ लोग हमें कहते हैं कि ब्राह्मण जन्म से होता है।
न (कोई) जन्म से ब्राह्मण होता है और न जन्म से अब्राह्मण । ब्राह्मण कर्म से होता है और अब्राह्मण भी कर्म से।
कृषक कर्म से होता है, शिल्पी भी कर्म से होता है, वणिक् कर्म से होता है (और) सेवक भी कर्म से ।
चोर भी कर्म से होता है, योद्धा भी कर्म से होता है, याजक भी कर्म से होता है (और) राजा भी कर्म से होता है।
उत्तराध्ययन में हरिकेशबल और जयघोष के जो ये दो प्रसंग हैं वे भगवान् महावीर के जातिवाद सम्वन्धी दृष्टिकोण पर पूरा प्रकाश डालते हैं। हरिकेशबल जन्मना चाण्डाल जाति के थे और जयघोष जन्मना ब्राह्मण थे। वे दोनों यज्ञ-मण्डप में गए और उन्होंने जातिवाद की बहुत स्पष्ट आलोचना की। वे दोनों प्रसंग वाराणसी में ही घटित हुए।
(१) हरिकेशबल को यज्ञ-मण्डप में आते देख जातिमद से मत्त, हिंसक, अजितेन्द्रिय, अब्रह्मचारी और अज्ञानी ब्राह्मणों ने परस्पर इस प्रकार कहा-'बीभत्स रूप वाला, काला, विकराल और बड़ी नाक वाला, अधनंगा, पांशु-पिशाच (चुडैल)-सा, गले में शंकरदूष्य (उकुरडी से उठाया हुआ चिथड़ा) डाले हुए वह कौन आ रहा है ?'
'ओ अदर्शनीय मूर्ति ! तुम कौन हो? किस आशा से यहां आए हो ? अधनंगे तुम पांशु-पिशाच (चुडैल) से लग रहे हो । जाओ, आंखों से परे चले जाओ। यहां क्यों खड़े हो?'
___ उस समय महामुनि हरिकेशबल की अनुकम्पा करने वाला तिंदुक वृक्षवासी यक्ष अपने शरीर का गोपन कर, मुनि के शरीर में प्रवेश कर, इस प्रकार बोला-'आपके यहां पर बहुत-सा भोजन दिया जा रहा है, खाया जा रहा है और भोगा जा रहा है। मैं भिक्षाजीवी हूं, यह आपको ज्ञात होना चाहिए। अच्छा ही है, कुछ बचा भोजन इस तपस्वी को मिल जाए।'
. (सोमदेव)-'यहां जो ब्राह्मणों के लिए भोजन बना है, वह केवल उन्हीं के लिए बना है । वह एक-पाक्षिक है-अब्राह्मण को अदेय है। ऐसा अन्न-पान हम तुम्हें नहीं देंगे, फिर यहां क्यों खडे हो ?' १. सुत्तनिपात, वासेट्ठसुत्त ।
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org