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आचार्यश्री तुलसी प्रेरणा-स्रोत और ज्योति स्तंभ हैं। उनकी प्रेरणा ने सदा मेरा पथ आलोकित किया है । प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन में मुनि दुलहराजजी ने निष्ठापूर्ण श्रम किया है। वे इस कार्य में दक्ष हैं। दक्षता और श्रम-इन दोनों के योग से स्वयं सौष्ठव आ जाता है।
युवाचार्य महाप्रज्ञ
३ सितम्बर ६१ जैन विश्व भारती लाडनूं (राज.)
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