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________________ ३८ संस्कृति के दो प्रवाह ८०० से ३०० के बीच का है। महावीर स्वामी उत्पन्न हुए थे, उनकी आयु (७२ वर्ष) भी इसी में शामिल है। आचार्य गुणभद्र के उक्त अभिमत से भगवान पार्श्व का अस्तित्व-काल ई० पू० नौवीं शताब्दी होता है। १. (क) History of the Sanskrit Literature, p. 226. आर्थर ए० मैकडॉनल के अभिमत में प्राचीनतम वर्ग बृहदारण्यक, छान्दोग्य, तैत्तिरीय, एतरेय और कौशीतकी उपनिषद् का रचना-काल ईसा पूर्व ६०० है। (ख) A. B. Kieth : the Religion and Philosophy of the Veda and Upanišads, P. 20. इसके अनुसार वैदिक-साहित्य का काल-मान इस प्रकार है-- १. उपनिषद् - ई० पू० ५ वीं शताब्दी। २. ब्राह्मण ---- ई० पू० ६ वीं शताब्दी। ३. बाद की संहिताएं --- ई० पू० ८-७ वीं शताब्दी। इन्होंने जैन तीर्थङ्कर पार्श्व का काल ईसा पूर्व ७४० निर्धारित किया है और प्राचीनतम उपनिषदों का काल पार्श्व के बाद माना है। (ग) एफ० मेक्समूलर-दी वेदाज, पृ० १४६-१४८ : इनकी मान्यता है कि उपनिषदों में प्रतिपादित वेदान्त दर्शन का काल मान ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी है । (घ) एच० सी० रायचौधरी-पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एन्सियन्ट इण्डिया, पृ० ५२ : ये मानते हैं विदेह का महाराज जनक याज्ञवल्क्य के समकालीन थे। याज्ञवल्क्य बृहदारण्यक और छान्दोग्य उपनिषद् के मुख्य पात्र हैं। उनका कालमान ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी है। वही, पृ० ६७-जैन तीर्थङ्कर पार्श्व का जन्म ईसा पूर्व ८७७ और निर्वाण-काल ईसा पूर्व ७७७ है। इससे भी यह सिद्ध होता है कि प्राचीनतम उपनिषद् पार्श्व के बाद के हैं। (घ) राधाकृष्णन-इण्डियन फिलोसफी, भाग १, पृ० १४२ : (१) इनकी मान्यता है कि ऐतरेय, कौशीतकी, तैत्तिरीय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक—ये सभी उपनिषद् प्राचीनतम हैं। ये बुद्ध से पूर्व के हैं। इनका कालमान ईसा पूर्व दसवीं शताब्दी से तीसरी शताब्दी तक माना जा सकता है। (२) राधाकृष्णन-दी प्रिंसिपल उपनिषदाज, पृ० २२ : बुद्धपूर्व के प्राचीनतम उपनिषदों का कालमान ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी से ईसा की तीसरी शताब्दी तक का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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