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संस्कृति के दो प्रवाह स्वीकार करता है अर्थात् व्रती भी होता है और अव्रती भी, वह 'बालपंडित' कहलाता है।
भगवान् महावीर ने साधु के लिए पांच महाव्रत और रात्रिभोजनविरमणव्रत का विधान किया। पांच महाव्रत ये हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ।
श्रावक के लिए बारह व्रतों की व्यवस्था की।' उनमें पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत हैं---
१. स्थल प्राणातिपात-विरति । १. दिग्-व्रत। २. स्थूल मृषावाद-विरति । २. उपभोग-परिभोग परिमाण । ३. स्थूल अदत्तादान-विरति । ३. अनर्थदण्ड-विरति । ४. स्वदार-संतोष।
४. सामायिक। ५. इच्छा-परिमाण।
५. देशावकाशिक । ६. पौषध ।
७. अतिथिसंविभाग। महात्मा बुद्ध ने भिक्षुओं के लिए दस शीलों और उपासकों के लिए पांच शीलों का विधान किया थादस शील'
पांच शील' १. प्राणातिपात-विरति । १. प्राणातिपात-विरति । २. अदत्तादान-विरति । २. अदत्तादान-विरति। ३. अब्रह्मचर्य-विरति । ३. काम-मिथ्याचार-विरति। ४. मृषावाद-विरति । ४. मृषावाद-विरति । ५. सुरा-मद्य-मैरेय-विरति । ५. सुरा-मैरेय-प्रमाद-स्थान-विरति ६. अकाल-भोजन-विरति । ७. नृत्य-गीत-वादित्र-विरति । ८. माल्य-गंध-विलेपन-विरति । ६. उच्चासन-शपन-विरति । १०. जातरूप-रजत-प्रतिग्रह-विरति ।
आजीवक-उपासक बैलों को नपुंसक नहीं करते थे; उनकी नाक भी. १. सूत्रकृताङ्ग, २।२।७५ । २. उपासकदशा, १११२ । ३. बौद्धधर्मदर्शन, पृ० १९ । ४. वही, पृ० २४ ।
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