________________
श्रमण परम्परा की एकसूत्रता और उसकेहे तु
ऋषभ का धर्म प्राग-ऐतिहासिक काल की सीमा का अतिक्रमण कर जब इतिहास की सीमा में आता है तब भी उसका मूल-स्रोत बहुत विभक्त नहीं मिलता।
. भगवान महावीर के तीर्थकाल में जो श्रमण संघ उपलब्ध थे, वे अधिकांश पार्श्वनाथ की परम्परा से सम्बन्धित थे। दीघनिकाय में जिन छह तीर्थङ्करों का वर्णन है, उन सबको 'संघी' और, 'गणी' कहा गया है।' धर्म सम्प्रदायों में 'संघ' की परम्परा श्रमणों की देन है । ऐतिहासिक काल में श्रमण संघ का सबसे पहला उदाहरण भगवान पार्श्व के तीर्थ का है। धर्मानन्द कोशाम्बी ने लिखा है
___ 'पार्श्व मुनि ने तीसरी बात यह की कि अपने नवीन धर्म के प्रचार के लिए उन्होंने संघ बनाए। बौद्ध साहित्य से इस बात का पता लगता है कि बुद्ध के समय जो संघ विद्यमान थे, उन सघों में जैन साध और साध्वियों का संघ सबसे बड़ा था।
___ 'पार्श्व के पहले ब्राह्मणों के बड़े-बड़े समूह थे, पर वे सिर्फ यज्ञयाज्ञ का प्रचार करने के लिए ही थे। यज्ञ-याज्ञ का तिरस्कार कर उसका त्याग करके जंगलों में तपस्या करने वालों के संघ भी थे। तपस्या का एक अंग समझ कर ही वे अहिंसा-धर्म का पालन करते थे, पर समाज में उसका उपदेश नहीं देते थे। वे लोगों से बहत कम मिलते-जुलते थे।
__ 'बुद्ध के पहले यज्ञ-याज्ञ को धर्म मानने वाले ब्राह्मण थे और उसके बाद यज्ञ-याज्ञ से ऊबकर जंगलों में जाने वाले तपस्वी थे। बुद्ध के समय ऐसे ब्राह्मण और तपस्वी न थे--ऐसी बात नहीं है। पर इन दो प्रकार के दोषों को देखने वाले तीसरे प्रकार के भी संन्यासी थे और उन लोगों में पार्श्व मुनि के शिष्यों को पहला स्थान देना चाहिए।" भगवान् पाश्र्व और महात्मा बुद्ध
देवसेनाचार्य (आठवीं सदी) के अनुसार महात्मा बुद्ध आरम्भ में जैन थे। जैनाचार्य पिहितास्रव ने सरयू नदी पर स्थित पलाश नामक ग्राम में पार्श्व के संघ में उन्हें दीक्षा दी और मुनि 'बुद्धकीति' नाम रखा। ___श्रीमती राइस डेविड्स का भी मत है कि बुद्ध पहले गुरु की खोज १. दीघनिकाय, सामफलसुत्त, प्रथम भाग, पृ० ४१-४२ : संघी चेव गणी चेव । २. भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृ० ४१,४३ । ३. दर्शनसार, ६ : सिरिपासणाहतित्थे, सरयूतीरे पलासणयरत्थो ।
पिहियासवस्स सिस्सो, महासुदो वुड्ढकित्ति मुणी ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org