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नामाचारी
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(५) छन्दना- मुनि को जो भिक्षा प्राप्त हो, उसके लिए उसे दूसरे
साधुओं को निमंत्रित करना चाहिए। (६) इच्छाकार-एक मुनि को दूसरे मुनि से कोई काम कराना आवश्यक
हो तो उसे इच्छाकार का प्रयोग करना चाहिएकृपया इच्छानुसार मेरा यह कार्य करें-इस प्रकार विनम्र अनुरोध करना चाहिए। सामान्यतः मुनि के लिए आदेश की भाषा विहित नहीं है । पूर्व दीक्षित साधु को बाद में दीक्षित साधु से कोई काम कराना हो तो उसके लिए भी इच्छाकार का प्रयोग आवश्यक
(७) मिथ्याकार-किसी प्रकार का प्रमाद हो जाने पर उसकी विशुद्धि के
लिए 'मिथ्याकार' का प्रयोग करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि प्रमाद को ढांकने के लिए मुनि के मन में कोई आग्रह नहीं होना चाहिए, किन्तु सहज-सरल
भाव से अपने प्रमाद का प्रायश्चित्त करना चाहिए। (८) तथाकार- आचार्य या कोई गुरुजन जो निर्देश दे, उसे 'तथाकार'
का उच्चारण कर स्वीकार करना चाहिए। ऐसा करने वाला अपने गुरुजनों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करता
(९) अभ्युत्थान-मुनि को आचार्य आदि के आने पर खड़ा होना आदि
औपचारिक विनय का पालन करना चाहिए। (१०) उपसंपदा-अपने गण में ज्ञान, दर्शन और चारित्र का विशेष
प्रशिक्षण देने वाला कोई न हो, उस स्थिति में अपने आचार्य की अनुमति प्राप्त कर मुनि किसी दूसरे गण के बहश्रत आचार्य की सन्निधि प्राप्त कर सकता है। अकारण ही गण-परिवर्तन नहीं किया जा सकता।'
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१. उत्तराध्ययन, १७.१० ।
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