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संस्कृति के दो प्रवाह
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चतुर्विंशस्तव श्लोक चरण उच्छ्वास (२) रात्रिक ४ १२३ ५० (३) पाक्षिक १२
३०० (४) चातुर्मासिक २० १२५ ५०० ५०० (५) सांवत्सरिक ४० २५२ १००८ १००८
विजयोदया' चतुर्विशस्तव श्लोक वरण उच्छ्वास (१) देवसिक
२५ १०० १०० (२) रात्रिक २ (३) पाक्षिक
३०० (४) चातुर्मासिक १६ १०० ४०० (५) सांवत्सरिक २० १२५ ५०० ५००
__ इस प्रकार नेमिचन्द्र और अपराजित-दोनों आचार्यों की उच्छ्वास संख्या भिन्न रही है । अमितगति श्रावकाचार के अनुसार देवसिक कायोत्सर्ग में १०८ तथा रात्रिक कायोत्सर्ग में ५४ उच्छ्वासों का ध्यान किया जाता है और अन्य कायोत्सर्गों में २७ उच्छवासों का। २७ उच्छ्वासों में नमस्कार मंत्र की नौ आवत्तियां की जाती हैं अर्थात तीन उच्छवासों में एक नमस्कार मंत्र पर ध्यान किया जाता है। संभव है प्रथम दो-दो वाक्य एक-एक उच्छ्वास में और पांचवां वाक्य एक उच्छ्वास में।। ___अमितगति ने एक दिन-रात के कायोत्सर्गों की कुल संख्या अट्ठाईस
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पणवीस अद्धतेरस, सलोग पन्नत्तरी य बोद्धव्वा । सयमेगं पणवीस, बे बावण्णा य बरिसंमि ॥ सायं सायं गोसद्धं, तिन्नेव सया हवंति पक्खम्मि । पंच य चाउम्मासे, वरिसे अट्ठोत्तरसहस्सा ।। १. मूलाराधना, ११११६ विजयोदया वृत्ति : सायाह्न उच्छ्वासशतकं, प्रत्यूषसि पंचशत, पक्षे त्रिंशतानि,
चतुर्ष मासेसु चतुःशतानि, पंचशतानि संवत्सरे उच्छ्वासानाम् ॥ २. अमितगति श्रावकाचार, ८६८-६६ :
अष्टोत्तरशतोच्छ्वास:, कायोत्सर्गः प्रतिक्रमे । सान्ध्ये प्रभातिके वार्धमन्यस्तत् सप्तविंशतिः। सप्तविंशतिरुच्छ्वासाः, संसारोन्मूलनक्षमे । सन्ति पंचनमस्कारे, नवधा चिन्तिते सति ॥
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